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हे माँ…….!!!!!

October 23, 2020
Shanky❤Salty
हे माँ
सुना है मैंने, सैकड़ों अपराध करने के बाद भी जो इंसान तुम्हारी शरण आकर तुम्हें माँ कह कर पुकारता है तुम उसे क्षमा कर देती हो।
माँ तुम तो करूणा का सागर हो, ममता कि मूरत हो तुम माँ।
पर देवी शुरेश्वरि यह बालक तुम्हारा बहुत ही परेशान है, थोड़ी कृपा कर दो जगदम्बिका।
जो भी तुम्हें पुकारता है तो तुम दौड़ी चली आती हो और उसके सारे कष्ट हर उसे निसंकोच मन-वांक्षित फ़ल देती हो।
अच्छा है माँ बहुत ही अच्छा है।
लेकिन माँ परिस्तिथि अनुकूल नहीं है।
लोग सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारी उस मूरत को पुजते हैं। माँ आएगी शेर पर सवार होकर सभी भुजाओं में अस्त्र लेकर पर हक़ीक़त में तो वे सत्य से विमुख हैं माँ
मेरा यह विश्वास है दुर्गे की तुम नहीं आओगी।
जगदमबिके जब तुम सर्वव्यापक हो, कण-कण में बसी हो तो कैसे आओगी और कहां से आओगी माँ???
पता नहीं माँ लोग क्यों तुम्हें फोटो और पत्थर तक ही सीमित मानते है। तुम तो हर जीव में शिव रूप में विराजमान हो।
फिर क्यों लोग दूसरों के प्रति क्रोध, लोभ, छल, कपट, हिंसा का भाव रखते है। या यूँ कहूं तो लोग तुम्हारे जीव पर ही बैर रखते है या आसान शब्दों में कहूं तो तुमसे बैर रखते है????
देवी सुनो ना
लोग कहते है ना “नवरात्र में नौ दिन देवी को पूजते हो और बाकि दिनों में स्त्री कि अस्मिता को नोचते हो”
यह सुन कर मैं कुछ पल के लिए मौन हो जाता हूँ। दिल बड़ा दुखती होता उन्हें कैसे समझाऊं की “जो देवी कि पूजा करता है वह एैसा घिनैना कृत कभी नहीं करता। करता वही है और बोलता भी वही है जो कभी देवी कि पूजा नहीं करता है।”
ओ माँ,
है निवेदन इस बालक का तुझसे आज
किसी भी व्यक्ति को रुपया, पैसा, धन, दौलत, सम्पत्ति, यश, क्रृति, ना दो माँ। तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ ज्ञान दो माँ।
क्योकिं माँ ज्ञान से व्यक्ति हर चीज़ पा सकता है। और रही बात माँ मुफ्त के चिजों कि लोगों को क्रद नहीं होती। तुम तो सबकी झोलियाँ भरती हो माँ। पर लोग इसका गलत इस्तेमाल कर रहे हैं।
देवी तुम प्रसन्न हो जाओ कह कर लोग जीव कि बलि दे देते है। पर भवानी वह जीव जिसकी भाषा मनुष्य समझ नहीं सकता वह तुम्हारा ही तो बालक है और तुम उसकी माँ। फिर तुम कैसे खुश हो सकती हो? यह मुझको स्पष्ट करो?
मेरा तो दिल यही कहता है माँ कि लोग अपने सुख के लिए मासूम से जीव की हत्या करते है तुम्हारा सहारा ले कर। चाहे वह किसी भी धर्म के क्यों ना हो। अल्लाह भी तुम्ही हो देवी जगतजननी भी तुम्हीं।
माँ श्रीमद् भगवद् गीता में तुमने ही ना श्री कृष्ण रूप में कहा है “नाहं वसामि वैकुण्ठे योगिनां हृदये न च ।
मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद ॥”
मैं न तो बैकुंठ में ही रहता हूँ और न योगियों के हृदय में ही रहता हूँ। मैं तो वहीं रहता हूँ, जहाँ प्रेमाकुल होकर मेरे भक्त मेरे नाम लिया करते हैं। मैं सर्वदा लोगों के अन्तःकरण में विद्यमान रहता हूं !
तो फिर माँ क्यों नहीं समझते है लोग कि हमें ही एक दुसरे कि मदद करनी होगी। सबका साथ देना होगा। हमें खुद ही खुद के लिए खड़ा होना होगा।
बहुत कमी है माँ सब में ज्ञान कि। तुम दे दोना। फिर कुछ देने कि जरूरत ही नहीं है।
लोगों को जिस्म का और रूह के बीच के ज्ञान का बोध करा दो। फिर तुम खुद ही देखना माँ हत्या, बलात्कार, ईर्ष्या जैसे घिनैने कृत खुद-ब-खुद रूक जाएंगे। क्योंकि शरीर को स्वयं राम और कृष्ण भी नहीं रख पाए
और आत्मा को तो स्वयं भोलेनाथ भी नहीं मार पाए
बस इतनी सी तो बात है माँ, दे दो ना।
और कुछ भी नहीं मुझे अपने लिए
क्योंकि पता है माँ मुझे यह खेल जरूर खत्म होगा और मेरा आपसे सदा के लिए मेल ज़रूर होगा…!!

Written by:- Ashish Kumar
Modified by:- A Wonderful Writer Radha Agarwal

Author:

I am Ashish Kumar. I am known as Shanky. I was born and brought up in Ramgarh, Jharkhand. I have studied Electronics and Communication Engineering. I have written 10 books. I have come to know so much of my life that life makes me cry as much as death. Have you heard that this world laughs when no one has anything, if someone has everything, this world is longing for what I have, this world. Whatever I am, I belonged to my beloved Mahadev. What should I say about myself? Gradually you will know everything.

23 thoughts on “हे माँ…….!!!!!

  1. माँ ने अनेक असुरों का अहंकार मर्दन किया है। पता है वे असुर कौन थे। हम में से ही एक जिसमें से किसी ने ज्ञान यज्ञ से तो किसी ने तपोयज्ञ से ताकत पाई और वही किया जो अब हो रहा है।
    माँ तो सर्वत्र है मिट्टी के मूरत में भी माँ है। रब तो सर्वत्र है ईंट पत्थर के बने इमारतों में भी। उसकी इबादत करने के लिए कोई जगह विशेष की जरूरत नही। सारा संसार उसका घर है। मगर द्वन्द्व देख ऐसा लगता है जैसे रब ने हमें नही बल्कि हमने उसे बनाया है और अब उसकी हिफाजत कहें या उसकी साम्राज्य विस्तार के नाम पर असंख्य निर्बल इंसानों की बलि चढ़ा रहे हैं जिसे उसने बनाया।

    हवा सर्वत्र है मगर कभी कभी बवंडर बन बहुत कुछ समाप्त कर देता है। माँ भी सर्वत्र है कहीं बवंडर बन गई फिर सारे अहंकार मिट जाएंगे।

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    1. बस यह ज्ञान हर एक को हो जाए। तो फिर “नहीं मैं नहीं तु नहीं अन्य रहा….हरि सम जग कछु वस्तु ना रहा” यह सबको स्पष्ट नज़र आ जाएगा। बहुत सही लिखा है आपना🌺😊

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  2. बहुत ही सुंदर 👌🏼और ह्रदयस्पर्शी रचना 👏
    कटु सच्चाई की अभिव्यक्ति है ,माँ अम्बे सभी को ज्ञान दे ताकि मानवता जीवित रहे ,माँआपकी प्रार्थना स्वीकार करें 🙏🏻आशीष भाई, जय माँ अम्बे 🙏🏻😊

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    1. करेगी माँ जरूर करेगी। वह दिन दूर नहीं जब माँ ज्ञान के सागर से समस्त श्रृष्टि को जगमगा देंगी। और बात समकी झोलियाँ भरती है, मेरी भी भरेगी ही🌺😊

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  3. You present an interesting concept of mother’s love. I suppose many conceive it as such, but–in my view–there is so much more to it. Do you believe all children, or only some, abuse the mother’s love as this child did? Blessings!

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