
Shanky❤Salty
हाँ मैं लड़की हूँ!
मेरे चरित्र पर उँगली उठाए जाते हैं
आँखों से मेरे कपड़े भी उतारे जाते हैं
मैं जंगल में जितना जानवरों से नहीं डरती
उतना तो रोड़ पर घुमते मानव रूपी दरिन्दों से हूँ डरती
मेरे सीने को देख
कभी किसी ने आम कहा,
तो किसी ने संतरा कहा,
किसी ने उसे छुना चाहा,
तो किसी ने उसे नोचना चाहा,
सड़ जाते मेरे ये दो फल
तो अच्छा होता
हर किसी को चाहिए होता है यह फल
सोशल मीडिया में अपने मेसेजस चेक करो
तो जितने भी अंजान मेसेज हैं
उन सब को उतसुकता है
मेरे जिस्म का नाप जानने की
कितने बड़े है मेरे फल?
उम्र क्या है मेरी?
साथ चलोगी तुम मेरे?
मेरे साथ सोउगी?
मैं तुम्हें खुश कर दूंगा
कितना लोगी?
कितने यार है तेरे?
हर पल चिंतित रहती हूँ मैं
हाँ मैं लड़की हूँ!
किसे अपनी व्यथा सुनाऊँ?
अपने दोस्तों से कहती हूँ
तो उन्हें मुझसे ज्यादा
इस तरह के मेसेजस और कमेंटस आतें हैं
चौदह साल का लड़का भी पीछे पड़ा है
साठ साल का बुढ़ा भी साथ सोने के लिए मर रहा है
साथ काम करने वाला बंदा भी मौके के फिराक में बैठा पड़ा है
हाँ मैं लड़की हूँ!
माना कि गलती मेरी थी
छोटे कपड़े मैंने पहने थे
पर उनका क्या
जिन्होंने हिजाब पहनना था?
तुमने तो अपनी आग में नवजातों को भी नहीं छोड़ा था
कहूँ तो क्या कहूँ मैं
लिखूँ तो क्या लिखूँ मैं
स्तन ही तो था
जिससे दुध निकलता था
ऐसा दुध
जिसे न तो गरम करना पड़े और न ठंडा
जैसा है वैसा ही अमृत तुल्य है
उस स्तन से निकल दुध को पीकर तुम बड़े हुए थे
और आज उस स्तन को ही नोचने पर आदम हुए हो?
हाँ मैं लड़की हूँ!
नहीं, नहीं
मैं तो खिलौना हूँ
मेरे जिस्म को नोचना दरिंदो का काम
मेरी आत्मा के मसलना अपनों का काम
एक महिला को स्तन कैंसर हुआ था
उन्होंने राम जी को धन्यवाद देते हुए
“शर्म के दो पहाड़” कविता लिख दी थी
कहा था उन्होनें “अब तुम पहाड़ पर उंगलियाँ नहीं चढ़ा पाओगे,
जिस पहाड़ से दूध की धार बहती थी
अब वहाँ से मवाद बहतें हैं,
अब पहाड़ के जगह समतल मैदान बचें हैं।”
दरिंदों ने दर्द इतना दिया की अब वे दर्द में भी खुश है।
हाँ मैं लड़की हूँ!
Written by:- Ashish Kumar
Modified by:- Ziddy Nidhi