बैठा हूँ भीड़ में ही पर रूठी है भीड़ मुझसे किरदार हज़ारों हैं पर ख़ामोशी नहीं मुझमें बस मौन हूँ मैं हस हस कर ज़िन्दगी काट रहे हैं वो आखिर कब तक हम भीड़ में जियेगें
यात्रा तो अकेले ही करनी है बेशक अंतिम यात्रा में भीड़ तो होगी पर केवल शमशान तक ही उसके आगे की यात्रा में क्या वो भीड़ साथ निभाएगी???
रूपये, पैसे, धन, दौलत, दिमाग खर्च कर के वो नहीं मिल सकता है जो आपने महाशिवरात्रि की रात्रि में दिया है। धन्यवाद सदाशिव शंभू धन्यवाद🙏💕
चारों प्रहर में पुजा हुई आपकी दुध से, दही से, धी से, मधु से विल्वप्रत्र से, जल से, चंदन से पर शंभो यह चिज, वस्तु आपके शिवलिंग स्वरूप में टिक न सकी पुष्प मुरझा गए, दुध, दही, जल तो बह गए जो भी अर्पण की सब उतर गया शंभू बस आप थे, हैं और सदा रहेंगे ठीक वैसे ही हम भी है शंभू गाड़ी में बैठ गए तो खुद को गाड़ी नहीं मानते हैं घर में रहते हैं तो खुद को घर नहीं मानते हैं जग को देखा था अब तक शंभो पर आपने तो उसे ही दिखा दिया जिससे सारा जग है सुख-दुख सपना है केवल शंभू ही अपना है ना तो अन्न लिया ना लिया जल पर शंभू ने जो दिया है उसे शब्दों में बयां करना संभव नहीं है तृप्त कर अनहद नाद दिया है
देखा है मैंने भाँग पीने से नशा चढ़ता है ठीक उसी प्रकार तेरा नाम मेरे अंतः में बसता है पर तेरी सौगंध खा कहता हूँ मैं भोले बाबा के नाम से ही सारी ज़िंदगी सुधरता है
शिवरात्रि सोने का नहीं जागने का दिन है अपने आत्मज्ञान को जागाने का दिन है अपने शिव स्वरूप में विश्रांति पाने की रात्रि है
उपवास करने का दिन है पर भूखे नहीं मरना है शरीर से कुछ भी न खाओ-पीयो पर अपनी आत्मा को राम रस-शिव रस से तृप्त कर दो सुंदर श्रृष्टि को देखते हो पर यह श्रृष्टि जिससे है उसको क्यों नहीं देखते हो
मेहंदी के पत्ते भी खुद को हरा ही समझते है उन्हें भी अपनी लाली का अंदाज़ा नहीं है तुम भी चीज, वस्तु, रूपये, पैसे में खुशियाँ ढूढ़ते हो तुम्हें भी अपनी शक्तियों का अंदाज़ा नहीं है
कब तक खुद को खुशियों और ग़म की जंजीरों से बाँधें रखोगे खुद को शरीर समझ कर कब तक जुल्म ढहाओगे हिंदू मुसलमान समझ कर कब तक झोपड़ियों में रहोगे
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र, सिया, सुन्नी समझ कर कब तक खुद को ठगोगे गोरे काले भी तो समझते हो ना आखिर कब तक राजा हो या रंक असली औकात तो शमशान में दिख ही जाती है
इस महाशिवरात्रि शिवजी पर दूध, घी, जल, बेलपत्र, फूल, फल चढ़ा कर पुजा करो या ना करो पर अपने आत्म स्वरूप से उस आत्म शिव की पूजा जरूर से जरूर करना।
भोले बाबा कहते हो उन्हें तो वो कहीं हिमालय पर, गुफाओं में, मंदिरों में, मस्जिदों में तुम्हें मिलें या ना मिलें मुझे पता नहीं है। पर तुम्हारे भीतर वो तुम को जरूर से जरूर मिलेगें। बस करबद्ध प्रार्थना है सबसे इस महाशिवरात्रि अपने अंतःकरण में अपने भीतर अपने आप से मिल कर देखों। मेरा वादा है आप सबसे फ़िर कुछ भी देखने को बाकी नहीं रह जाएगा।
नाहं वसामि वैकुण्ठे योगिनां हृदये न च मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद।।
यह पुस्तक काव्यात्मक ढंग से वृद्धाश्रम से अनाथालय तक की यात्रा है हर रिश्ते में स्वार्थ देखा है हमनें एक माँ – बाप ही हैं जिन्हें निस्वार्थ देखा है वो बचपन में ही खुशियों के रास्ते खोल देते हैं हम बड़े हो कर उनके लिए ना जाने क्यों वृद्धा आश्रम के रास्ते खोल देते हैं पढ़ा – लिखा कर हमको क़ाबिल बना देते हैं पर हम कभी उनके दर्द को पढ़ नहीं पाते हैं अपने अरमानों का गला घोट जिन्होनें हमे इंसान है बनाया हमनें अपनी इंसानियत को मार माँ – बाप की आँखों से आँसू बहवाया है जिन्होंने हमको उंगली पकड़ चलना सिखाया है हमने उनको हाथ पकड़ घर से बेघर कर दिखाया है अपनी खूशबू दे हमको जिन्होंने फूल बनाया है हमने तो काँटे दे उनको रुलाया है जिसने काँधे पे बैठा हमें पूरा जहाँ घुमाया है उसे सहारा देने पे हमें शर्म आया है हमारी छोटी सी खरोंच पर उसने मरहम लगाया है हमने अपने शब्दों से ही उनके दिल में जख्म बनाया है बचपन में बच्चों कि तबियत बिगड़ती थी तो माँ – बाप कि धडकनें बढ़ती थीं आज माँ – बाप कि तबियत बिगड़ी है तो बच्चे जायदात के लिए झगड़ते हैं हम प्रेम दिवस मनायेंगें माँ – बाप को भूल प्रेमी संग ज़िन्दगी बितायेंगे सच कहूँ तो रूह को भूल ज़िस्म से इश्क़ कर दिखायेंगे पता नहीं माँ – बाप ने कैसे संस्कार हैं हमको दिये बड़े होते ही इतने बतमीज़ बन गए जिनकी कमाई से अन्न है खाया आज उनको ही दो वक्त की रोटी के लिए है तरसाया गूगल पर माँ – बाप की बहुत अच्छी और प्यारी कविताएँ मिल जाती हैं मुझको पर पता नहीं क्यों मैं निःशब्ध हो जाता हूँ वृद्धा आश्रम की चौखट पर आ कर माँ – बाप का तिरस्कार वो कर मेरे राम जी के सामने आशीर्वाद हैं माँगते अब किन शब्दों में समझाऊँ मैं उनको ईश्वर ही हमारे माँ बाप बनकर हैं आते अपने संस्कारों से जिसने हमें है पाला आज हमने अपनी हरकतों से जीते जी माँ – बाप का अंतिम संस्कार है कर डाला भरे कंठ लिए एक सवाल है गर माँ – बाप से मोहब्बत है तो वृद्धा आश्रम क्यों खुले हैं ? एक सवाल है गर माँ – बाप से मोहब्बत है तो वृद्धा आश्रम क्यों खुले हैं ?
मेरे इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं होगा पर मेरी पंक्तियों को पढ़ हर किसी के आँखों से आँसू छलक ही जाएगा यार वो कितना भी पत्थर दिल क्यों ना हो वो एक ना एक पल पिघल ही जाएगा हमें जीवनसाथी तो हजारों मिल जाएंगे परन्तु क्या माँ – बाप दुसरे मिल पाएँगे ??? अब बेसरमों कि तरह हाँ मत कह देना हाथ दिल पल रख मैं कहता हूँ एक बार प्यार से माँ – बाप को गले लगा के तो देखो प्रेम दिवस उनके साथ मना के तो देखो सच कहता हूँ तुम निःशब्ध हो जाओगे जब माँ बाप के हृदय से तुम्हारे लिए करुणा, माधुर्य, वात्सल्य छलकेगा न तब तुम्हारे रूह से आवाज आएगी “हो गए आज सारे तीर्थ चारों धाम” “घर में ही कुंभ है” “माँ – बाप की सेवा ही शाही स्नान है” मान लो मेरी बात यही दिव्य प्रेम है बाकी तो आप जानते ही हो क्योंकि सुना है आप समझदार हो मेरे शिव जी ने भी कहा है “धन्या माता पिता धन्यो” “गोत्रं धन्यं कुलोदभवः” “धन्या च वसुधा देवि” “यत्र स्याद् गुरुभक्तता” जिसके अंदर गुरुभक्ति हो उसकी माता धन्य है, उसके पिता धन्य है, उसका वंश धन्य है उसके वंश में जन्म लेने वाले धन्य हैं, समग्र धरती माता धन्य है वैसे प्रथम गुरु कौन होता है हम सबको पता ही है तो कर लो न गुरुभक्ति उत्पन्न मैं बहुत कुछ कहना चाहता हूँ हृदय की पीड़ा है जब सुनता हूँ बलात्कार हुआ, किशोराअवस्था में बच्ची गर्भवती हो गई, 17 साल की बच्ची का गर्भपात हुआ, इश्क कर बच्चे भाग गए अब आगे क्या कहूँ मेरे आँसू ही जानते हैं शायद माँ – बाप ने अच्छे संस्कार नहीं दिये होंगे इसलिए एैसा हुआ होगा यह कह हम ही ऊँगली उठाते है अच्छा छोड़ो ये सब बातें गर तुम्हें एक साथ आँखों से सच देखना है और कानों से झूठ सुनना है तो किसी वृद्धा आश्रम जा कर वहाँ रहने वाले किसी से भी उनकी ख़ैरियत पूछ कर देखो तुम खुद – ब – खुद समझ जाओगे मैं कहना क्या चाहता हूँ और लिखना क्या चाहता हूँ तुम्हारे पास वक़्त कहाँ सच में अब तुम बड़े हो गए हो वक़्त कहाँ है बुढ़ापा आने में निकल रहा था मैं वृद्धाआश्रम से अचम्भित सा रह गया गुजरते देखा मैंने एक औरत को वृद्धाआश्रम के बगल से शुक्रिया अदा कर रही थी वह ईश्वर को रहा न गया मुझसे पूछ बैठा मैं “आप कौन हो” मुस्करा वह कह गई “एक बाँझ हूँ” गूगल के द्वारा पता चला है भारत में कुल 728 वृद्धा आश्रम हैं और 2 करोड़ अनाथआलय हैं वो कहते है न कर्म का फल सबको भोगना ही पड़ता है….!!! खैर छोड़ो तुम्हारी जो मर्जी हो करना हाथ जोड़ कहता हूँ बस सिर्फ एक बार सिर्फ एक बार हर दुआ में उसकी दुआ है जिसके सिर पर माँ की छाया है समझो ना वहीं पर खुदा का साया है काँटों को फूल बनाया है पिता ने हर मुश्किल राह को आसान जो बनाया है सोकर स्वयं गीले में, सुलाया तुझको सूखे में माँ की ममतामयी आँखों को, भूलकर भी गीला ना करना माँ की ममता का और पिता की क्षमता का अंदाजा लगाना असंभव है उंगली पकड़ कर सर उठा कर चलाना सिखाया है पिता ने अदब से नज़रें झुका कर चलना सिखाया है माँ ने सब सिखाया है माँ ने हौसला भरा है पिता ने यश और कीर्ति दिलाया है पिता ने माधुर्य और वात्सल्य दिलाया है माँ ने कर्ज लेना कभी नहीं सिखाया है आपने ना जाने क्यों हमें अपने कर्जदार बना दिया है जिसे इस जन्म में तो पूरा करना संभव ही नहीं है जब तक साँसे है तब तक कर लो ना प्यार उनको देखा है मैंने साँसे रुक जाती है ना उनकी तो सुकून की नींद उड़ जाती है हमारी पिता कि साया हटते ही खुद-ब-खुद बड़े हो जाते है माँ के गुजरते ही बच्चे तकिये में मुँह छुपा रोते रह जाते है जमीन के टुकड़े के लिए बच्चे माँ बाप के दिल के हाजारो टुकड़े कर देते है गरीबी सताती जरूर थी पर हमारा पेट भर वो खुद भूखा रहती थी वो और कोई नहीं हमारी माँ ही थी हम कैसे खुश रहे इस सोच में ही तो माँ बाप सारी जिंदगी गुजारते है धन लाख करोड़ कमाया है माँ बाप को खुद से दूर कर तूने असली पूंजी गवायाँ है खाया है मैंने माँ के एक हाथों से थप्पड़ तो दूजे से घी वाली रोटी याद है मुझे वो रात भी जब खुद की नींद उड़ा कर गहरी नींद में सुलाती थी खुद गीले में सो कर मुझको सूखे में सुलाती थी जरूरतें अपनी भुला कर हसरतें मेरी पूरा करते थे वो और कोई नहीं मेरे मेरे पिता थे मेरे आँसूओं को मेरी चीखों को वो मुस्कान में बदलती थी आज जब वो बूढ़ी हो गई है तो ना जाने क्यों हमें उसके जरूरतों कि चीख – पुकार कानों तक नहीं रेंगती है यक़ीनन बेटा अब बड़ा हो गया है पैरों पर खड़ा हो गया है जमाने की चकाचौंध में वो अपने माँ बाप को भूल गया है अरसा बीत गया होगा माँ की गोद में सोए हुए पर कोई बात नहीं जब माँ सदा के लिए सोएगी ना तब हमें उसके गोद की कमी खलेगी एक अनुभव लिखता हूं मैं करीब नौ दस घंटे जंग लड़ रहा था हाँ वही मृत्यु से दुआओं का दौर चल रहा था मेरे अपनों का जंग करीब करीब जीत चुका था खबर भी फैल गई थी जंग में जीत हो गई है….. ….लोग अपने अपने घर चल दिए थे कुछ लोगों ने खाना खा लिया था तो कुछ सो चुके थे पर….. …कुछ ही देर में बाजी पलट चुकी थी मृत्यु ने प्रहार शुरू कर दिया था सफेद चादर से मैं लिपटा था पल भर में ही खून के फव्वारों से वो लाल हो गया हार चुका था मैं जिंदगी की जंग को चीखता रहा मैं चिल्लाता रहा मैं पर मृत्यु ने अपनी पकड़ नहीं छोड़ी मेरे शरीर से मेरे प्राणों को खींच कर अलग करने ही वाली थी कि तभी ईश्वर के दूत आए हाँ माँ पापा आए माँ मुझको देख हैरान तो हो गई थी पर मृत्यु उन्हें देख परेशान हो गई थी पापा ने तुरंत जिंदगी के कागज पर दस्तखत कर जीत का आदेश लिखा फिर क्या मृत्यु को इजाजत ही नहीं मिली और खाली हाथ उसे वहाँ से लौटना पड़ा कहाँ था ना मैंने बहुत पहले जिनके सिर पर महादेव का हाथ होता है वहाँ पर मृत्यु को भी इज्जात लेनी पड़ती है और स्पष्ट रूप से देख भी लिया मैने खुशियां ज़िन्दगी में कम होती जा रही है दो रोटी के लिए हम माँ बाप से जो अलग होते जा रहे है माँ बाप के प्यार जैसे प्यारा और कुछ नहीं लगता है माँ बाप के चेहरे में खुशियां आसानी से दिख जाती हैं पर जख्मों का दाग दिख नहीं पाता है अपने संस्कारों से हमारी हिफाज़त करने का संकल्प जो लिया है उन्होंने अपनी जान से भी ज्यादा हमको चाहा है हम सबने सत्यवान और सावित्री कि कहानी सुनी ही होगी की यमराज से भी अपने पति की प्रारण ले आती है पर यह तो माँ बाप है जो मृत्यु तो बहुत दूर कि बात है यह तो संकट को भी पास भटकने ना दे
ऐसा अद्भुत प्रेम है इनका पिता हमारी खामोशियों को पहचानते हैं माँ हमारे आँसूओं को आँचल में पिरोती है बिन कहे ही हालातों को हमारे अनुकूल कर देते है जब माँ बाप साथ हो ना तो किसी भी चीज कि परवाह नहीं होती उनके होने से ही हर दिन होली लगती है हर रात दिपावली लगती है और ना हो ग़र माँ बाप तो पूछो उनसे होली भी बेरंग सी लगती है दिपावली भी अंधियारा सा लगता है आँखों में आँसू और मन भारी सा लगता है क्या मंदिर-मस्जिद भटका है वो क्या स्वर्ग कि चाहत होगी राम जी उन्हें माँ बाप मिले हैं जिन्हें चरणों में ही माँ बाप के बैकुंठ होगी पता नहीं राम जी वो औलाद कैसी है जो सफलता की शिखर पर पहुंच कर पूछता है माँ बाप से तूने किया ही क्या है मेरे लिये बस राम जी यही कारण है उसके पतन का कहता है वो औलाद जो भी किया वो तो फ़र्ज़ था पर कैसे समझाऊँ मैं उनको यार कम से कम माँ बाप ने फ़र्ज़ तो पूरा कर दिया पर तुमने क्या किया यकीनन दुनिया में बहुत सी चीजें अच्छी है पर सच कहता हूँ मैं हमारे लिए तो हमारे माँ बाप ही सबसे अच्छे है वो बाप ही जनाब जो भरें बाजार में अपनी पगड़ी उछलने ना देगा पर अपने बच्चों की खुशी के खातिर ही भरी महफ़िल में भी अपनी पगड़ी किसी के पैरों पे रख देगा अपनी खुदगर्जी के लिए वो बच्चे बाप को भी भरे बाजार में गलत कह देगा जीवन के एक पड़ाव में जरूरत होती है माँ – बाप को हमारे एहसानों की नहीं हमारे प्यार की जिसने हमें हर आभावों से दूर रख काबिल बनाया उन्हें ही हम आभावों में रख रहे हैं अपने चार दिन के मोहब्बत के खातिर हम तमाशा कर देते हैं उनका जिसने हमारे जन्म से पहले ही ताउम्र हमसे मोहब्बत की सौगंध खाई थी कितनी आसानी से कह देते हैं हम समझते नहीं है माँ बाप हमारे पता नहीं हम ये बात समझ क्यों नहीं पाते हैं बड़े क्या हो गए हम मानों पंख ही आ गए चलना क्या सीख लिया उनकी उंगली पकड़ कर उड़ना ही शुरू कर दिया हमें रास्ता दिखाया माँ बाप ने और व्यवहार हमारा ऐसा जैसे खुद ही बनाया रास्ता हमनें किसी शख़्स ने बहुत खूब लिखा था खुली आँखों से देखा सपना नहीं होता माँ बाप से बढ़कर कोई अपना नहीं होता जामाने को कठोर कहते हो माँ के कोमल हृदय को छोड़ उसे जमाने में फंसे रहते हो माना की पिता की बात नीम जैसी कड़वी है पर यार सेहत के लिए तो वही अच्छी है सिखाया था मेरे राम जी ने मुझको हर चाहत के पीछे मिला दर्द बेहिसाब है पर एक माँ बाप ही है जो ग़र साथ हो ना तो वहाँ दर्द का नामो निशां नहीं है ये हमारा हंसना, गाना, लिखना, खेलना, कूदना, सोना सब उनसे ही तो है माँ बाप साथ हो ना तो बेफिक्री खुद-ब-खुद साथ आ ही जाती है वर्ना देखो उन्हें जिनके सिर से माँ का आँचल हट जाता है या पिता का साया हट जाता है क्या हाल हो जाती है उनकी बस जिस्म रह जाता है जरूरत पड़ने पर एक माँ भी पिता का फर्ज निभाती है और पिता भी माँ का पता नहीं यह अलौकिक शक्ति कहाँ से आती है बच्चे होते हुए हमें कद्र नहीं होती माँ बाप की जब हम भी माँ बाप होते तो बच्चे करते नहीं कद्र हमारी ये सिलसिला चलता आ रहा है सब कुछ मालूम होते हुए भी हम खुद को पतन के रास्ते ले जा रहे हैं हे राम पता नहीं क्यों हम ऐसा करते जा रहे हैं ज़िन्दगी जन्नत है उनकी जिन्होंने माँ बाप के सिखाये रास्तों पे चला है जिस तरह राम जी हमारा बुरा नहीं कर सकते है ठीक उसी तरह माँ बाप हमारा बुरा नहीं कर सकते है गुलाबों की तरह महक जाओगे ग़र माँ बाप के संस्कारों को अपनाओगे ये रिश्ता गजब है जनाब तकलीफ तुम्हारे देह को होगी पर दर्द माँ बाप को महसूस होगी यार कृष्ण भी श्री कृष्ण तो माँ बाप से ही बने है राम भी श्री राम माँ बाप से ही बने है तुम भी बन सकते हो हम भी बन सकते हैं महान ग़र ख्याल रख लिया माँ बाप का तो एहसानों वाला नहीं प्यार वाला माँ बाप के रहते ना किसी ने परेशानी देखी ना देखा मुसीबतें जब गुजरें माँ बाप तो ना रहा चेहरे पर मुस्कान क्यों मंदिरों मस्जिदों में ईश्वर, अल्लाह को खोजते हो घर में सेवा माँ बाप कि कर के तो देखो पीछे पीछे हरि फिरते दिखेंगे वो माँ पुराने ख्यालातों कि लगती है जिसने तुम्हें काबिल बनाने के लिए अपने माँ बाप के दिए जेवर गिरवी रख दिये थे क्यों अपने शब्दों से उनके सिने को छलनी करते हो जड़ों को काटोगे तो फल कहां से होगें पानी सींचों जड़ में माँ बाप को गले लगा देखो सारी अलाएं – बलाएं चलीं जाएगी और हरि पीछे पीछे आ जाएगे दवाओं में भी वो असर नहीं है जो माँ बाप की दुआओं में है जग की कितनी भी सवारी क्यों ना कर लो बाप के घोड़े की सवारी कहीं नहीं मिलेगी कितनी भी महंगे तकिये में क्यों ना सो लो माँ के गोद जैसे सुख कहीं नहीं मिलेगा सिखाते है माँ बाप मुझको रखो ना गाँठ तुम मन में ना तन में ग़र जीना है तुमको खुल के तो ना मान दिया ना दिया कभी अपमान माँ – बाप ने बस सिखाया है जहर कि पुड़िया ये मान – अपमान हर हाल में मुस्कुराना सिखाया है हर हाल में जीना सिखाया है कभी बोझ नहीं समझा है हमें माँ – बाप ने
पर ना जाने क्यों हमें माँ – बाप बोझ लगते हैं बच्चे माँ – बाप के साथ अब नहीं रहतें बल्कि अब माँ – बाप बच्चों के साथ रहते हैं अपनी चाहतों को राख बनातें हैं इच्छाओं को खाक करते हैं वो और कोई नहीं हमारे अपने माँ – बाप होते हैं ज़रा – जरा सी बात पर वो साथ छोड़ देते हैं वो मतलब रिश्तेदार, दोस्त, साथी पर एक माँ – बाप ही हैं जो शरीर छोड़ने के बाद भी साथ नहीं छोड़तें धन लाख करोड़ तूने क्यों ना कमाया हो पर माँ – बाप को भुला तूने सब कुछ गवाया है ज़रा सोचो ना वो घर कैसा होगा ? जिसकी आँगन सुनी होगी रसोई में बरतन टकराने की आवाज तक नहीं आएगी देर से उठने पर डॉट नहीं पड़ेगी आँचार बाजार से खरीद खाना होगा यार बेजान – सी लगेगीं वो घर कल्पना मात्र से रूह काँप उठती है शौक तो बाप की कमाई से पूरी होती है खुद के पैसे से तो बस जरूरतें ही पूरी हो सकती हैं ताउम्र बचपन रह जाएगा ग़र तू माँ – बाप संग ज़िन्दगी बिताएगा वो कहते हैं ना उमर का फासला है या कहूँ तो उमर का फैसला है हर किसी ने अपनों पर अपना अधिकार जमाया है बड़े होकर हर चिड़िया ने अपना रास्ता बनाया है अरे ओ जनाब यह कोई सपना नहीं है माँ बाप सा कोई अपना नहीं है महादेव जी की पइयाँ पड़ी थी तेरी माँ ने पाने को तुझको पर तूने……. यार लगा के देखो ना गले तुम एक बार खुशियाँ मिलेगीं तुझको अपरम्पार मैं कैसे करूँ ना भरोसा उनका जिन्होंने पाला तुमको है और तूने उसे ही निकाला घर से है यक़ीनन तुम जमाने के नजरों में अच्छे रहो या ना रहो पर अपने माँ – बाप के नजरों में कभी बुरा बन के ना रहो हजारों जिम्मेदारियों को त्याग देना पर माँ – बाप को छोड़ शहर के तरफ पाँव मत बढ़ा देना एक उमर तो बितने दो जनाब खुद – ब – खुद एहसास हो जाएगा अकड़ना कभी सिखाया नहीं इन्होंने ना झुकना सिखाया कभी सिखाया तो सिर्फ अपनी मौज में रहना एक वाक्या याद आ रहा है रात को वो आ ही गई थी मुझको साथ ले जाने वाली ही थी दवा ने भी अपना असर है छोड़ा था दर्द ने जो साथ पकड़ा था काफी दिनों के बाद मेरे दिल में दर्द उठा था बाहर पेड़ – पौधे बारिश में भीग रहे थे इधर मैं पसीने से भीगा हुआ था नींद तो ऐसी रुठी थी दवा लेने के बाद भी मुझसे दूर बैठी थी हर कोई श्री कृष्ण के जन्म की तैयारियाँ कर रहा था मैं लेट अपनी धड़कनों को गिन रहा था पर माँ वो तुम ही थी ना जिसने श्रीकृष्ण के मूर्ति की पूजा छोड़ “वासुदेवम् स्त्रं इति “ ( वासुदेव तो हर जगह है ) मुझे गोद में सुलाया था मेरे दिल पर हाथ रख “गोविंद हरे गोपाल हरे” “जय जय प्रभु दिन दयाल हरे” गाकर मेरे दर्द को दूर कर रहीं थीं माँ तेरे थपकियों ने ही मुझको सुलाया था कल तक चलना तो दूर मुँह से आवाज तक नहीं ले पा रहा था पर माँ तेरे प्रेम और वात्सल्य में जादू था जादू अगले ही दिन मैं बैठ ये चार पंक्तियाँ लिख रहा था वो कहते है ना ये कैसा है जादू समझ में ना आया तेरे प्यार ने हमको जीना सिखाया
“गीता” यह तो माँ है, माँ! शरीर रूपी माँ नहीं आत्म रूपी माँ है ज्ञान रूपी माँ है
थके, हारे, गिरे हुए को उठाती है बिछड़ों को मिलाती है भयभीत को निर्भय, निर्भय को नि:शंक नि:शंक को निर्द्वन्द्व बनाकर नारायण से मिला के जीते जी मुक्ति का साक्षात्कार कराती है मेरी माँ “गीता”
ऐसा पढ़ा है मैंने,, श्री कृष्ण के मुख से निकली है “गीता” श्री विष्णु का ह्रदय है “गीता”
परन्तु, वास्तव में “गीता” तो किसी मजहब, पंथ, समुदाय, जाती, धर्म, विषेश का नहीं है बल्कि यह तो जीवन जीने की कला है जिस तरह रोता हुआ बच्चा माँ की गोद में आकर चुप हो जाता है वैसे ही “गीता” माँ को पढ़ कर हर बच्चा, बुढ़ा, जावन अपने आप को निश्चित कर सकता है
578 भाषाओं में “गीता” का अनुवाद को चुका है जिसका भी मन है पढ़ने को वो किसी भी भाषा में “गीता” को पढ़ सकता है मैं आज “गीता जयंती” पर शुभकामनाएं क्या दुंगा आप सब को…….बस करबद्ध प्रार्थना है 24 घंटे में से मात्र 24 ससेकेंड “गीता” रूपी माँ के गोद में बिताए। मैं तो इतना विश्वास से कह सकता हूँ कि विश्व में “गीता” के समान कोई दूसरा ग्रंथ नहीं है
मेरे चरित्र पर उँगली उठाए जाते हैं आँखों से मेरे कपड़े भी उतारे जाते हैं मैं जंगल में जितना जानवरों से नहीं डरती उतना तो रोड़ पर घुमते मानव रूपी दरिन्दों से हूँ डरती
मेरे सीने को देख कभी किसी ने आम कहा, तो किसी ने संतरा कहा, किसी ने उसे छुना चाहा, तो किसी ने उसे नोचना चाहा, सड़ जाते मेरे ये दो फल तो अच्छा होता हर किसी को चाहिए होता है यह फल
सोशल मीडिया में अपने मेसेजस चेक करो तो जितने भी अंजान मेसेज हैं उन सब को उतसुकता है मेरे जिस्म का नाप जानने की कितने बड़े है मेरे फल? उम्र क्या है मेरी? साथ चलोगी तुम मेरे? मेरे साथ सोउगी? मैं तुम्हें खुश कर दूंगा कितना लोगी? कितने यार है तेरे? हर पल चिंतित रहती हूँ मैं
हाँ मैं लड़की हूँ!
किसे अपनी व्यथा सुनाऊँ? अपने दोस्तों से कहती हूँ तो उन्हें मुझसे ज्यादा इस तरह के मेसेजस और कमेंटस आतें हैं
चौदह साल का लड़का भी पीछे पड़ा है साठ साल का बुढ़ा भी साथ सोने के लिए मर रहा है साथ काम करने वाला बंदा भी मौके के फिराक में बैठा पड़ा है
हाँ मैं लड़की हूँ!
माना कि गलती मेरी थी छोटे कपड़े मैंने पहने थे पर उनका क्या जिन्होंने हिजाब पहनना था? तुमने तो अपनी आग में नवजातों को भी नहीं छोड़ा था
कहूँ तो क्या कहूँ मैं लिखूँ तो क्या लिखूँ मैं स्तन ही तो था जिससे दुध निकलता था ऐसा दुध जिसे न तो गरम करना पड़े और न ठंडा जैसा है वैसा ही अमृत तुल्य है उस स्तन से निकल दुध को पीकर तुम बड़े हुए थे और आज उस स्तन को ही नोचने पर आदम हुए हो?
हाँ मैं लड़की हूँ!
नहीं, नहीं मैं तो खिलौना हूँ मेरे जिस्म को नोचना दरिंदो का काम मेरी आत्मा के मसलना अपनों का काम
एक महिला को स्तन कैंसर हुआ था उन्होंने राम जी को धन्यवाद देते हुए “शर्म के दो पहाड़” कविता लिख दी थी कहा था उन्होनें “अब तुम पहाड़ पर उंगलियाँ नहीं चढ़ा पाओगे, जिस पहाड़ से दूध की धार बहती थी अब वहाँ से मवाद बहतें हैं, अब पहाड़ के जगह समतल मैदान बचें हैं।”
दरिंदों ने दर्द इतना दिया की अब वे दर्द में भी खुश है।
हैलो हरिणा दीदी,🤗 आज आपका जन्मदिन है। 😍 लेकिन ना तो मैं आपको आज गिफ्ट दे पाऊँगा।😔 और ना ही आप मुझे पार्टी दे पाएंगे।😒 लेकिन फिर भी 15 दिन पहले से ही आपके जन्मदिन के लिए मैं उत्साहित था। 🥳 क्या करूँ ? क्या करूँ ? के चक्कर में कुछ भी नहीं कर पाया। 😑😣 लेकिन कोई नहीं दीदी जल्दी ही आप सात समंदर पार आओगे फिर बहुत सारा गिफ्ट्स दुंगा😇 और पार्टी भी आपसे लूंगा।🥰 आप तक पहुँचने का सबसे अच्छा और एक ही जरिया है, आपकी लिखी किताब “जीवन के शब्द“
पता नहीं क्या लिखूँ मैं आज दीदी, ना कोई राज है, और ना ही कोई ख़्वाब है बस एक चाहत है🙏 आप जहां भी रहें 🤗 चेहरे पर मुस्कान बना रहे 😁 जरुरी नहीं की हम रोज ही बात किया करें 🥺 बस जितना भी बात करें आपसे वो यादें हमेशा ताजा रहें 🤩 और जल्दी से आप इस साल 5बुक पब्लिश करें 🥳 ताकि उसे मैं अपने बुक सेल्फ में जगह दे सकुं “ख़लील जिब्रान” ने कहा था ना दीदी “साथ होने के लिए हमेशा पास खड़े होने की ज़रूरत नहीं होती।“ बस राम जी से एक दुसरे के लिए प्रार्थना ही काफी है🙏 खैर ! जो भी हो मेरी बक-बक तो रुकेगी नहीं🙈 इसलिय हरिणा दीदी आपके जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं 🥳 बस मस्कुराते रहे🤗 सारी अलए-बलाए दूर खुद-ब-खुद हो जाएगीं 🙏
When I write, I always feel your presence With your fragrance In my breath Don’t know why I smile With some tears Seriously, I don’t know This is our memories or your love
The Flowers of Faith Who Grew on the Tree of Love, Broke Several Times in Anger, Lost Between Leaves of Issues, Trample Down Under Misunderstandings. Still… Don’t Know How?? Habitually a New Flower Every Time Bloomed…
स्त्रीमन एक कविता संग्रह है, जो स्त्रीयों के विचारों को दर्शा रही है। इसमें सभी उम्र और वर्ग की औरतों की सोच को ध्यान में रखा गया है।
इस किताब की यह बात अच्छी है की इसमें औरतों की सभी तरह की भावनाओं को प्रस्तुत करने की कोशिश की गयी है जैसे चिंता, बंधन, प्रेम, दुखः, महत्वकांक्षा, जोश और समाजिक सोच का उनपर असर। कुछ कविताएँ तो ऐसी भी हैं जिनको पढ़ कर सब दृश्य चलचित्र की तरह आंखों के सामने चलता अनुभव होता है। ऐसी कुछ कविताओं में मेरी पसंदीदा हैं- स्त्री-मन, वैश्या और बोझ। पर इस पुस्तक में मुझे सबसे अच्छी वो कुछ कविताएँ लगीं जो किसी भी महिला को जोश से भर देने के लिए काफी हैं, जैसे- तू चलती रह, नारी हूँ आज की हूँ, वो योधा है। इस पुस्तक में माँ और बच्चे के रिश्ते पर भी कुछ एक कविताएँ हैं। और बहुत सारी ऐसी कविताएँ भी हैं औरतों के घुटन और सामाजिक और पारिवारिक बंधन को दर्शा रहीं हैं जैसे- कभी बेचारी, रूह मेरी, चमकता आकाश, असमानता। कुछ कविताएँ प्रेम विरह पर भी हैं जिनमें मुझे सबसे अच्छी लगी- मैं अजीज नहीं।
मेरी तरफ से यह एक बेहद असाधारण एंव बेहतरीन कविता संग्रह है जो अपने पुस्तक शीर्षक को बहुत अच्छे तरीके से सार्थक करती है।
इसलिए मैं अपनी रेटिंग इस पुस्तक के लिए 5 star देना चाहूँगा।
उम्मीद है मेरी तरह बाकी पाठकों को भी यह किताब पसंद आयेंगी और मेरी यह समीक्षा उन्हें सही मार्गदर्शन देंगीं।
और सभी से अनुरोध भी करता हूँ कि किताब को एक बार जरूर पढ़ें।
First of all, I bow my gratitude to God, who has inspired me to write, I thanks to my mother “Pramila Sharan” and father “Shatrughan Sharan“. Because without his grace I would not exist.
I am grateful to those writers-readers and critic bloggers, who helped me in my writing.
I also thank Radha Agarwal Ji and Nidhi Gupta “Jiddy”. I would like to thank those who helped me and did proof reading of it and made my words beautiful.
The help that Sachin Gururani did in making the cover page of my book I thanks them wholeheartedly.
Apart from this to all those who have helped me directly or indirectly.
This book is a Journey of Old Age Home to Orphanage Home in a poetic manner.
This book is written for the mature reader. It’s purpose is not to hurt anyone’s feelings. It is written in the favor of every person, society, gender, creed, nation or religion. These are the author’s own views. Hope that by reading this book, you will try to understand and appreciate the author’s point of view. It is merely an attempt to portray social reality. The aim of the book is to promote peace, non-violence, tolerance, friendship, unity, prosperity, happiness and integrity.
The internal mechanisms that schedule periodic bodily functions and activities is know as Biological clock or Circadian Rhythm.
3am to 5am-(The life force is especially in the lungs)
Those who wants their body is healthy and active then This is the best time for drinking some lukewarm water, walking in the open air and doing pranayama. People who get up in Brahmamuhurta are intelligent and enthusiastic and those who stay asleep, life becomes dull.
5am to 7am – (The life force is in the large intestine)
This is the time for defecation and the bath should be done. Those who defecate after 7 o’clock in the morning have many diseases.
7am to 9am – (The life force is in the stomach)
At this time we can take only milk or fruit juice or any beverage items
9am to 11am – (The life force is in the pancreas and spleen)
This time is suitable for food. Drink lukewarm water (according to convenience) sips in between meals.
11am to 1pm – (The life force is in the Heart)
There is a law in our culture to do mid-evening around 12 noon from 11 to 1 pm. During this time Food forbidden. This time is known as Sandhya Kaal. This time is best for reading, writing, singing or doing spiritual things.
1pm to 3pm– (The life force is in the small intestine)
About 2 hours after the meal should drink water according to thirst. Eating or sleeping at this time hinders the absorption of nutritious food and juices and the body becomes sick and weak.
3pm to 5pm – (The life force is in the bladder)
If you drink water 2-4 hours before this time, there will be a tendency to pass urine at this time. And you’ll never suffer from kidney or urine disease.
5pm to 7pm – (The life force is in the kidney)
Light food should be taken at this time. Do not eat for 10 minutes before sunset to 10 minutes after (in the evening). Milk can be drunk three hours after meals in the evening
7pm to 9pm – (The life force is in the brain)
At this time the brain is especially active. Therefore, except in the morning, the lesson read in this period is remembered quickly.
9pm to 11pm – (The life force is in the spinal cord)
This time provides maximum relaxation. The awakening of this time exhausts the body and the intellect.
11pm to 1am – (The life force is in the gall bladder)
The awakening of this time produces bile disorders, insomnia, eye diseases and brings early old age. New cells are formed during this time.
1am to 3am – (The life force is in the liver)
The awakening of this time spoils the liver (liver) and the digestive system.
Rishis and Ayurvedacharyas have said that it is forbidden to eat food without feeling hungry. Therefore, keep the quantity of food in the morning and evening in such a way that during the time mentioned above, one feels hungry freely.
Shanky❤Salty बिन बुलाए आ ही जाती है वो हमें पता नहीं उसके वक्त का पर पता है उसे सही वक्त का हजारों मिन्नतें कर लो लाख जतन कर लो वो आएगी ना समेटने का वक्त देगी ना पुछने का वक्त देगी बस कर्मों का हिसाब देगी क्यों ना तु धन लाख कमाया है सुना है देश-विदेश का वैद्य तु बुलाया है पर हकीकत में कुछ भी काम ना आया है जब दरवाजे पर दस्तक उसका आया है हाँ वही सही समझे मौत
1. Yaado K Panno Se: कुछ बाते कुछ किस्से मेरे यादों के पन्नों से
In this book I have written about some of my experiences. Some, such feelings have been written which are completely empty. Some past has also been written, some society’s character and face too. This is a hindi poetry book.
2. Read Then Think: It’s not only a Book but it’s my Feeling
This is an English motivational quotes collection book. In this book I have written only as much as I have lived life and embraced death. That too by smiling and drinking the poison of pain.
This book presents a Global System for Mobile Telecommunication (GSM) network based system which can be used to remotely send streams of 4 bit data for control of USVs. Furthermore, this book describes the usage of the Dual Tone Multi-Frequency (DTMF) function of the phone, and builds a microcontroller based circuit to control the vehicle to demonstrate wireless data communication.
4. Sach Ya Sajish ? / सच या साजिश ?: संस्कृती पर प्रहार
This Hindi book is written for the mature reader. It’s purpose is not to hurt anyone’s feelings. Neither is it in favor or opposition of any person, society, gender, creed, nation or religion. These are the author’s own views. Hope that by reading this book, you will try to understand and appreciate the author’s point of view. It is merely an attempt to portray social reality. The aim of the book is to promote peace, non-violence, tolerance, friendship, unity, prosperity, happiness and integrity.
5. Truth or Conspiracy: Untold Story by Indian Media
This book is a translation of Sach Ya Sajish? Book. In this book you may read about many untold story by Indian Media & what conspiracy is being hatched against Indian culture.
Whenever you will read this book, you will feel a divine power. Yes, the divinity and power of Lord Rama. Your Soul will rejoice. You will feel energetic and enthusiastic. Your heart will be filled with extreme pleasure. There’s a possibility that you may shed tears. I am confident that you will have a serene experience, an experience indescribable in words. Let’s see what is your experience.
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मास्क हम लगाएंगे नहीं “वैक्सीन” ? अरे ये मैंने किसका नाम ले लिया सुना है इसको लगाने से नपुंसकता आती है? यार एैसे भ्रामक और बेहुदी अफवाह हम फैलाएगें और दोष की अंगुली सरकार पर उठाएगें अर्थव्यवस्था चौपट हो रही है महंगाई बढ़ रही है पेट्रोल-डीजल की तो बात ही छोड़ो जनाब दो साल से मुफ्त अनाज तो ले ही रहें है मुफ्त वैक्सीन भी ले ही लेगें दफ्तरों में भी कोरोना का नाम ले कामचोरी भी कर लेगें दो पैसे के टैक्स बचाने में हम तो माहिर है जनाब आठ-दस बच्चे पैदा कर पंचर की दुकान खोल देश के संसाधनों को खत्म कर सरकार को गाली देने का काम हम बखूबी करेगें पर अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट कर हम कोरोना की तीसरी लहर का स्वागत के करेगें यक़ीनन मौतें कम थी कोरोना की दुसरी लहर में कोई नहीं मौत के आकड़े हर रोज घर में गिनना अपने मतों से बहुमत दे कर सरकार बनवाना फिर उसी सरकार को पुर्ण रूप से गलत ठहरा देना हमें बखूबी जो आता है
जात ना पूछो मेरे मालिक की जनाब बस कबीर को जान लीजिए ना फिर ना ही मैं रहा, ना ही तू रहा का आत्मा दीप भीतर जलते देख लीजिए ना
वो कहते हैं ना कोई नहीं है अपना ये जग है तो एक सपना जो भी जीवन में आएगा कुछ-न-कुछ हुनर सिखा ही जाएगा बस फर्क इतना है कि हम क्या उनसे सीख जाएंगे यक़ीनन ज़िंदगी है तो चलना है बढ़ना है पर भीड़ को लेकर या भीड़ में रह कर अपने आप का साक्षात्कार कर ये फैसला हमको करना है।
चलती चाकी देखकर सो कबीरा दिया रोय दुइ पाटन के बीच में आके साबुत बचा ना कोय
चलती चक्की देख के, हँसा कमाल ठठाय। कीले से जो लग रहा, ताहि काल न खाय
ये दो दोहे है, एक कबीर के तो दुजे कमाल के। ज़िंदगी कि वास्तविकता है इन दोहे में अपनी आत्मचेतना को जगाने के लिए। इस कबीर जंयती पर मैं क्या श्रद्धांजलि अर्पित करूँ उन्हें। उनके दोहे और उनके विचारों से मैं तो उन्हें भावंजलि ही अर्पित कर सकता हूँ।
सही समझे मृत्यु हाँ मैं मृत्यु के बारे में ही लिख रहा हूँ वो मृत्यु जो मुझे मार नहीं सकती है पर हाँ आपको ज़रूर मार सकती है ग़र आप स्वयं को जीवन समझते हैं तो मृत्यु उसे ही स्वीकारता है जो जन्म को स्वीकारता है
ना तो मेरा जन्म हुआ है ना ही मेरी मृत्यु हो सकती है ये शरीर का जन्म होता है तो मृत्यु भी उसी की हो सकती है हमारी नहीं, कभी नहीं
स्वयं नाथ जी भी हमें नहीं मार सकते हैं यक़ीनन वो सर्वसमर्थ हैं पर हमें मारने में कभी भी नहीं अपनी उर्जा को पहचानों वो कहते हैं ना अज्ञानता का जीवन किसी मृत्यु से कम नहीं है
महेंदी के पत्ते में ही उसकी लाली छिपी होती है एक बीज में ही जन्म और मृत्यु छिपा है मृत्यु एक वस्त्र बदलने की प्रक्रिया है बस और कुछ नहीं
अर्थ स्पष्ट है मेरे शीर्षक का इस जीवन की यात्रा अंतिम होनी चाहिए कोई कितना भी बुलाए लौट के नहीं आना है यह जीवन अनमोल है व्यर्थ ना गवाओ
मोक्ष की उस स्थिति को जान लो मर्जी तुम्हारी है सुख-दुख कि चक्की में पिसना है या उस चक्की के कील से लग कर और अपनी यात्रा को अंतिम करना है
अब अलविदा कहता हूँ कुछ पल के लिए जो इस आत्मज्ञान से निकला वो तो डूब गया और जो इस आत्मज्ञान में डूबा वो तो हो गया पार…!!
पाया उसे जाता है राम जो कहीं खोया है राम ढूंढा उसे जाता है राम जो भुलाया है राम आप कहाँ से आओगे राम आसमान से टपकोगे राम या धरती फाड़ आओगे राम कहीं से नहीं न राम क्योंकि आप तो हर ज़गह विद्यमान हो राम चींटी की पुकार हो राम या मस्जिद कि अज़ान हो राम आप सब सुनते हो राम आप तो उर्जा रूप में राम हर ज़गह हो राम
मैं मर भी नहीं सकता राम न मैं जी सकता हूँ राम बस आप में बस सकता हूँ मैं राम शिव भी मैं ही हूँ राम शक्ति भी मुझमें ही राम भक्ति भी मुझमें ही है राम रावण भी मुझमें ही है राम मंदिर मूर्ति मस्जिद अज़ान राम ये सब तो प्रतीक हैं मात्र हैं राम
परछाईं को कोई वास्तविक समझ ले राम तो यह ना समझी है राम फ़ोटो को अगर जीवित समझ ले राम तो क्या करूँ मैं राम हर किसी की आस्था का प्रणाम है राम पर आगे भी तो बढ़ना होगा न राम कब तक तस्वीरों में अटकेगें हम राम यह संभव नहीं है राम
कि एक ही वक़्त पर हर कोई राम मंदिर में आपकी पूजा कर सके राम मस्जिद में बैठ आपको पुकार सके राम पर यह तो संभव है राम कि मन मंदिर में बैठ मानस पूजा कर सके राम शिव रुप में हम शिव की पूजा करेंगे राम राम रुप में हम राम रस पियेंगे राम अल्लाह रुप में हम अल्लाह से मिलेंगे राम हे चिदानंद रुप राम क्या चढ़ाऊँ मैं तुमको राम
जो सास्वत है राम उसे कैसे नश्वर अर्पण करूँ मैं राम चार दीवार के अंदर बैठता हूँ मैं राम तो चार दीवार ही दिखती है मुझको राम बाजार में बैठता हूँ मैं राम तो बाज़ार ही दिखता है मुझको राम जब राम रुप में बैठता हूँ मैं राम तो सब राम राम राम ही दिखता है मुझको राम हद में तुझको ध्याया है राम तो मानव ही रह गया हूँ मैं राम
बेहद जब तुझको ध्याया है राम तो तेरा दूत बन कर ही रह गया हूँ मैं राम अनहद हो कर जब तुझको ध्याया है राम तो राम रूप में ही ख़ुद को पाया हूँ मैं राम सब अपने हैं राम सबके अपने हैं राम देने में तो आप कंजूसी नहीं करते हो राम फ़िर हम क्यूँ आपको जपने में कंजूसी कर देते हैं राम मन नहीं लगता है आपमें हमारा राम आपको हम ख़ुद से अलग समझते हैं राम
हे राम अब इच्छा नहीं होती है राम कि आपको मैं मानव रूप में पूजा करूँ राम आपको तो आप रूप में ही हो कर पूजना है राम अब आपको दूध, दही, जल नहीं चढ़ना है राम आपको तो मन और बुद्धि चढ़ाना है राम आपको पुष्प और विल्वपत्र क्या चढ़ाऊँ मैं राम आपको तो सत्व, रज और तम चढ़ाना है राम
आपको क्या भोग लगाऊँ मैं राम आपको तो प्यार से गले लगाना है राम क्या दीपक जलाऊँ मैं राम अब तो आँखों में वो उजाला लाना है राम जिससे सब कुछ और सबमें राम ही राम दिखे राम अब क्या कहूँ मैं राम अब मुझे इससे अधिक कुछ भी नहीं आता है राम अब मुझे आपको भजना भी नहीं है राम ना मुख से जपना है राम ना हाथों से जपना है राम अब आप हमें भजो न राम अब हम पायेंगे आपमें ही विश्रा-राम
मुस्कुराने की कला सिखाते है राम ग़म का ज़हर पीना सिखाते है राम भूत और भविष्य कि गोद त्यागना सिखाते है राम वर्तमान में बैठना सिखाते हैं राम काया-माया छोड़ना सिखाते हैं राम
राम होकर राम में जीना सिखाते हैं राम स्वाद ज़िन्दगी का चखना सिखाते हैं राम
सुनो ना राम लिखूँ मैं कैसे तुझपे राम समझते क्यूँ नहीं हो तुम राम कैसे लिख दूँ मैं तुझपे राम
तुझ तक मेरी बुद्धि नहीं पहुँच पाएगी राम वहां तक शब्द मैं कैसे पहुँचाऊ राम तुम तो अबाधित हो मेरे राम शब्दों से कैसे बाँधू मैं तुझको राम
ध्यान में लीन हैं मेरे राम भूखा नहीं है प्यासा नहीं है मेरा राम तृप्त है मेरा राम क्या अर्पण करूँ मैं तुझको राम
कोई धाम नहीं है बिना तेरे मेरे राम हर एक के अंतःकरण में बसता है मेरा राम सौगंध तेरी खाता हूँ मैं राम भर भर प्याला पीता हूँ नाम तेरा मेरे मैं राम
सच कहता हूँ ज़िन्दगी सुधरता है मेरा ओ प्यारे राम पता नहीं ओ मेरे प्यारे राम क्यों आँखों से पानी छलकता है राम जब जब जिक़्र होता तेरा है राम पावन सा तेरा है नाम राम
कुछ तो बात है श्मशानों में इतनी भीड़ क्यों है? जंगल की लकड़ियाँ क्यों कम पड़ रहीं हैं?
कुछ तो बात है प्रकृति का ऐसा ही वास्तविक रूप है? या फिर यह हमारे कर्मों का फलस्वरूप है?
कुछ तो बात है कहीं पर चुनाव जीतने की होड़ है तो कहीं पर ज़िंदगी हार रही है
कुछ तो बात है एक वक्त था जब मन में फासलें थे अब तो हकीकत में भी फासलें हो गयें हैं
कुछ तो बात है धन हमनें लाखों – करोड़ों में कमाया पर हमनें मन से छल – क्रोध को छोड़ नहीं पाया
कुछ तो बात है खाने को दो रोटी नहीं है पर अल्लाह के लिए बकरी तैयार रखें हैं
कुछ तो बात है कुंभ के गंगा में भीड़ तो है पर ज्ञान की गंगा खाली ही है
कुछ तो बात है कितनी भयावह परिस्थिति है कि चार जन भी नहीं मिल रहें अपने को कंधा देने की खातिर
कुछ तो बात है जंगल की लकड़ियाँ कम पड़ रहीं हैं यह रौद्र रूप नहीं है प्रकृति का है यह केवल चेतावनी पिछले वर्ष कोरोना करूणा में थी अबको-रोना ही है वक्त है संभल जाओ वरना इससे भी भयावह स्थिति उतपन्न हो सकती है खै़र कुछ तो बात है…….!!!!!!
इस किताब में हमारे आराध्य रामजी के विषय में विस्तृत रूप से बताया गया है, यह एक कवि और उसके आराध्य के बीच का वार्तालाप है, इसमें कवि का कोमल ह्रदय छलकता है, वह अपने राम जी को हर जगह हर वक़्त पाता है, उसे अपनी मृत्यु की भी चिंता नहीं है क्योंकि वह राम राम करते हुए ही मरना चाहता है, कवि का विश्वास है की राम राम करने से चौरासी योनि का जो चक्र है वह टूट जायेगा और उसे मोक्ष प्राप्त हो जायेगा, कवि ने अपने इस किताब में अपने आराध्य रामजी और खुद को दोस्ताने रिश्ते को भी बतलाया है और एक दास के रिश्ते को भी बताया है। इस किताब को पढ़ने के बाद हमे राम जी के संम्पूर्ण जीवन का ज्ञान हो जाता है, कवि राम मंदिर के कारण हुए राजनीति और दंगा फसाद के कारण बहुत दुखी है, वह राम मंदिर के नाम पर राजनीति करने वाले से बहुत नाराज है। कवि अपने मन की हर एक बात जो वह अपने राम जी से कहना चाहता है उसने अपने इस किताब में खुल कर लिखा है, आप इसे एक संवाद के रूप में जब पढेगें तब आपको यह समझ में आ जायेगा की कवि कितना मासूम है, वह अपनी हर एक बात अपने आराध्य रामजी से कैसे कहता है। कुछ पंक्तियाँ कवि ने कुछ इस तरह से लिखीं हैं जो बहुत ही गहरी हैं। आप सभी को यह किताब अवश्य पढ़ना चाहिए ताकि आपको रामजी के विषय में और भी जानकारी हो।
I will recommend this book to know about our culture and civilisation..it is not just about one or two concepts..it covers each and every aspect about our saints, religion, society in today’s era, history, lifestyle and much more..book provides detail information about our sanskriti amazingly.
Realize that enough hidden strength or power lies within you, then there is no need to wander somewhere, like Mehndi leaf looks Green but the Redness is hidden within.
मैंने एक किताब लिखी है जिसे आप देख महसूस करेंगे की यह किसी विशेष धर्म, संप्रदाय, जाति, मज़हब के लिए है लेकिन ये सत्य नहीं है, यह किताब पूरी मानव जाति के लिए है। इस किताब में राम शब्द का प्रयोग एक उर्जा के तौर पर किया गया है जो हर ज़गह विद्यमान हैं। वह उर्जा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह में भी है और शिवजी में भी है,
जिसे आजकल की साईंस ने भी माना है
“गौड पार्टीकल” के रूप में।
मेरा किताब लिखने का एक ही मकसद है की जाति, मजहब, धर्म, रंग, भेद,…आदि को ख़त्म कर उस एक पर ध्यान देना।
दिखते तो यहाँ पर सब अलग अलग हैं पर हैं तो सब एक ही ना।
फ़िर यह ईर्ष्या राघ द्वेष क्यों और किससे..!!!
राजा हो या रंक असली औकात तो श्मशान में दिख ही जाती है
फ़िर जीते जी यह बाहरी दिखावा क्यों।
कुछ वास्तविकता को मैंने लिखा है जिसे लोग जान कर भी अनजान बनें हैं।
जिस्म और रूह की सत्यता को मैंने स्पष्ट रूप से लिखा है।
राम होकर राम को भजना है।
इस किताब का उद्देश्य अपने भीतर छुपी आत्मचेतना को जगाना है।
किसी भी चीज़ का नशा एक-न-एक दिन उतरना ही उतरना है।
रात को पियो तो सुबह
सुबह को पियो तो रात
उतर ही जाता है।
राम नाम का प्याला पी कर के तो देखो।
राम नाम का नशा कर के तो देखो वचन है मेरा आपको इससे सारी ज़िन्दगी सुधर जाती है
राम जी ही तो सरस्वती जी के रूप में मेरी जिह्वा पर विराजमान हैं
My fifth book has been published on February 16, 2021. I have written some of my experiences in this book. And some such untold story by our Indian media or paid media or fabricated media. This book is written for the mature reader. Its purpose is not to hurt anyone’s feelings. Neither is it in favor or opposition to any person, society, gender, creed, nation or religion. These are my own views.
In this book you read about:-
Some Cultures Of The World
Culture Of India
Indian Saint
What Is The Purpose Of The Saint?
Gautam Buddha
False Accusations On Gautam Buddha
Jayendra Saraswati Shankaracharya
False Accusations On Jayendra Saraswati Shankaracharya
Asaram Bapu
Parliament Of World Religion
Scientific Conclusion Of Asaram Bapu Aura
Women Empowerment
Divine Baby Rites
Stop Abortion Campaign
Cesarean Delivery
Spiritual Awakening Campaign
Prisoner Uplift Program
Vrinda Expedition
Tribal Welfare
Gurukul
Valentine’s Day
Protection Of Cows From Slaughterhouses
The Main Reason Why Asaram Was Targeted
False Accusations On Revered Bapuji
What Are People Saying
Attack On Hinduism
I offer my gratitude to God. Those who inspired my writing. I thank you to my mother Pramila Sharan. Without her blessings, the existence of this book was difficult. I’m grateful to the writers, readers & critic bloggers who helped to make my writing the best. I would also like to thank you to Radha Agarwal, who helped me and did a proof reader. I thank to Rekha Rani ma’am for helping me in this book. Who raised the respect of my creation with their thoughts. Also, my heartfelt thanks to those who helped to write this book.
Hope that by reading this book, you will try to understand and appreciate my point of view. And give your feedback.
सुना है मैंने, सैकड़ों अपराध करने के बाद भी जो इंसान तुम्हारी शरण आकर तुम्हें माँ कह कर पुकारता है तुम उसे क्षमा कर देती हो।
माँ तुम तो करूणा का सागर हो, ममता कि मूरत हो तुम माँ।
पर देवी शुरेश्वरि यह बालक तुम्हारा बहुत ही परेशान है, थोड़ी कृपा कर दो जगदम्बिका।
जो भी तुम्हें पुकारता है तो तुम दौड़ी चली आती हो और उसके सारे कष्ट हर उसे निसंकोच मन-वांक्षित फ़ल देती हो।
अच्छा है माँ बहुत ही अच्छा है।
लेकिन माँ परिस्तिथि अनुकूल नहीं है।
लोग सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारी उस मूरत को पुजते हैं। माँ आएगी शेर पर सवार होकर सभी भुजाओं में अस्त्र लेकर पर हक़ीक़त में तो वे सत्य से विमुख हैं माँ
मेरा यह विश्वास है दुर्गे की तुम नहीं आओगी।
जगदमबिके जब तुम सर्वव्यापक हो, कण-कण में बसी हो तो कैसे आओगी और कहां से आओगी माँ???
पता नहीं माँ लोग क्यों तुम्हें फोटो और पत्थर तक ही सीमित मानते है। तुम तो हर जीव में शिव रूप में विराजमान हो।
फिर क्यों लोग दूसरों के प्रति क्रोध, लोभ, छल, कपट, हिंसा का भाव रखते है। या यूँ कहूं तो लोग तुम्हारे जीव पर ही बैर रखते है या आसान शब्दों में कहूं तो तुमसे बैर रखते है????
देवी सुनो ना
लोग कहते है ना “नवरात्र में नौ दिन देवी को पूजते हो और बाकि दिनों में स्त्री कि अस्मिता को नोचते हो”
यह सुन कर मैं कुछ पल के लिए मौन हो जाता हूँ। दिल बड़ा दुखती होता उन्हें कैसे समझाऊं की “जो देवी कि पूजा करता है वह एैसा घिनैना कृत कभी नहीं करता। करता वही है और बोलता भी वही है जो कभी देवी कि पूजा नहीं करता है।”
ओ माँ,
है निवेदन इस बालक का तुझसे आज
किसी भी व्यक्ति को रुपया, पैसा, धन, दौलत, सम्पत्ति, यश, क्रृति, ना दो माँ। तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ ज्ञान दो माँ।
क्योकिं माँ ज्ञान से व्यक्ति हर चीज़ पा सकता है। और रही बात माँ मुफ्त के चिजों कि लोगों को क्रद नहीं होती। तुम तो सबकी झोलियाँ भरती हो माँ। पर लोग इसका गलत इस्तेमाल कर रहे हैं।
देवी तुम प्रसन्न हो जाओ कह कर लोग जीव कि बलि दे देते है। पर भवानी वह जीव जिसकी भाषा मनुष्य समझ नहीं सकता वह तुम्हारा ही तो बालक है और तुम उसकी माँ। फिर तुम कैसे खुश हो सकती हो? यह मुझको स्पष्ट करो?
मेरा तो दिल यही कहता है माँ कि लोग अपने सुख के लिए मासूम से जीव की हत्या करते है तुम्हारा सहारा ले कर। चाहे वह किसी भी धर्म के क्यों ना हो। अल्लाह भी तुम्ही हो देवी जगतजननी भी तुम्हीं।
माँ श्रीमद् भगवद् गीता में तुमने ही ना श्री कृष्ण रूप में कहा है “नाहं वसामि वैकुण्ठे योगिनां हृदये न च ।
मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद ॥”
मैं न तो बैकुंठ में ही रहता हूँ और न योगियों के हृदय में ही रहता हूँ। मैं तो वहीं रहता हूँ, जहाँ प्रेमाकुल होकर मेरे भक्त मेरे नाम लिया करते हैं। मैं सर्वदा लोगों के अन्तःकरण में विद्यमान रहता हूं !
तो फिर माँ क्यों नहीं समझते है लोग कि हमें ही एक दुसरे कि मदद करनी होगी। सबका साथ देना होगा। हमें खुद ही खुद के लिए खड़ा होना होगा।
बहुत कमी है माँ सब में ज्ञान कि। तुम दे दोना। फिर कुछ देने कि जरूरत ही नहीं है।
लोगों को जिस्म का और रूह के बीच के ज्ञान का बोध करा दो। फिर तुम खुद ही देखना माँ हत्या, बलात्कार, ईर्ष्या जैसे घिनैने कृत खुद-ब-खुद रूक जाएंगे। क्योंकि शरीर को स्वयं राम और कृष्ण भी नहीं रख पाए
और आत्मा को तो स्वयं भोलेनाथ भी नहीं मार पाए
बस इतनी सी तो बात है माँ, दे दो ना।
और कुछ भी नहीं मुझे अपने लिए
क्योंकि पता है माँ मुझे यह खेल जरूर खत्म होगा और मेरा आपसे सदा के लिए मेल ज़रूर होगा…!!
सबसे पहले मै महादेव को नमन करते हुए कृतज्ञता ज्ञापन करता हूँ। जिन्हों ने मुझें लेखन की प्ररणा दी। मैं अपनी माँ श्रीमती प्रमीला शरण को आभार देता हूँ। उनके आशीर्वाद के बिना इस पुस्तक का अस्तित्व कठिन था। मैं कृतज्ञ हूँ उन लेखक-पाठकों और आलोचक ब्लॉगरों का, जिन्होंने मेरे लेखन को श्रेष्ठ बनाने मे मदद की। मैं राधा अग्रवाल जी को भी धन्यवाद देना चाहूंगा। जिन्होंने मेरी मदद की और इसका प्रूफ रीडिंग किया। मेरी पुस्तक में मदद करने के लिये मैं रेखा रानी मैम को आभार व्यक्त करता हूँ। जिन्होंने अपने विचारों से मेरी रचना का सम्मान बढ़ाया। इसके अलावा, जिन लोगों ने भी इस पुस्तक को लिखने में मदद मिलीं, उन्हें दिल से धन्यवाद।
मेरी चौथी किताब “सच या साजिश” आज प्रकाशित हो गईं है। इस पुस्तक में भारतीय संस्कृति, भारत कि जड़ें, भारतीय संतों के बारें में, भारतीय संस्कृति पे षड्यंत्र, संतों पर प्रहार के बारे में पढ़ेंगें। इस किताब का उद्देश्य सामाजिक यथार्थ को चित्रित करना, शांति, अहिंसा, सहिष्णुता, दोस्ती, एकता, समृद्धि, खुशी और अखंडता को बढ़ावा देना है। पाठकों को बतलाना है कि भारतीय संस्कृति पर कितनी बड़ी साजिश है और सनातन संस्कृति की वास्तविकता से अवगत कराना है। मैं बहुत ही जल्द अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित करूंगा। आशा है, आपको मेरी पुस्तक पसंद आएगी।
Hello everyone, hope you all are very well. But I’m not.
I’ve decided to take a break from blogging and posting. I don’t know this break is long or short. But it’s not leaving forever.
I request you to everyone please drop your post link in my instagram or mail. Because you all are incredible. I don’t want to miss anyone post. So, please understand.
कभी ज़ेहन में ख्याल आता था लिखना बहुत आसान है। बस चाहिये काग़ज़, क़लम, एक दिल, दिमाग़ और कुछ लफ़्ज़, बस लिखने का सिलसिला चल निकलता है। लेकिन जब लेखनी हाथों में लिया, तब समझ आया लफ़्ज़ों, नज़्मों, कविताओं के खेल निराले होते हैं। तूलिका पकड़, कल्पना के सहारे ज़िंदगी के सच्चे रंग नहीं उकेरे जा सकते। ऐसे रंग कभी बहुत गहरे, कभी हल्के और कभी बदरंग हो जातें हैं।
लिखने के लिये चाहिये जिंदगी के सच्चे सबक, सच्ची सीख, चोटें, अनुभव और उनसे निचोड़े लफ्ज़। इनसे बनती हैं सच्ची कविताएँ और नज़्म। सच है, दिल से निकली बातें हीं दिल तक जाती हैं। बहते पानी सी अनवरत चलती ज़िदगीं ने बहुत रंग दिखाये। जीवन में उतार-चढ़ाव और ठहराव दिखाये। ख़ुद आईना बनने की कोशिश में इन सब को शब्दों और लफ़्जों का जामा….लिबास पहना कविता का रुप दे दिया। ज़िंदगी को इन कविताओं में ढालने की यह कोशिश कैसी लगी? क्या ये कवितायें आपके दिल को छूती हैं? पढ़ कर देखिये न रेखा आंटी की किताब को।
Title: Zindagi Ke Rang
Product ID: 197911-1336776-NA-NED-T0-NIKI-REG-IND-DIY
ISBN: 9781649511652
Format: Paperback
Date of Publication: 06-07-2020
Year: 2020
Writing a book is harder than I thought and more rewarding than I could have ever imagined. None of this would have been possible without our society, who gave me multiple (multi-coloured) experiences of life. I’m eternally grateful to Mr. Sachin Gururani my friend-cum- brother who has designed the beautiful cover of the book and my parents as well, who encouraged me during the entire journey of my writing. Special thanks to Dr. Sakshi Pal and friends who suggested me to write a book and helped me in finalizing it within a limited time frame. Writing a book about the reality of life is a surreal process. I’m forever indebted to my incredible readers as this has become possible because of their efforts and encouragement. Finally, thanks to all those who have been a part of this beautiful journey.
I have written some of my experiences in this book. And some such feelings which are completely blank. Some letters have been written, also some have the character and the face of the society. I have written the life just as much as I have lived and have embraced death.
This book is dedicate To my friend-cum-boss Heena Chugh 99% motivation & 99% patience. No, it does not add upto 198% but she multitasks.
“मधुसूदन सिंह के कविताओं एवं गीतों में भावनाओं एवं कल्पनाओं का अद्भुत प्रवाह है। जिसे पढ़कर ऐसा लगेगा जैसे उन पन्नो में दर्ज अफसाने अपने ही हैं।
मधुसूदन सिंह का जन्म 17 जनवरी 1973 को नाना के घर गाँव खुदरांव जिला रोहतास में हुआ था। उनका बचपन ननिहाल में ही गुजरा। उनका पैतृक गाँव डिहरी जो कि बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित है। उनके पिता श्री सुरेंद्र सिंह किसान एवं उनकी माता श्रीमती रेवती देवी गृहिणी हैं। वे चार भाई, बहनों में दूसरी संतान हैं। मधुसूदन सिंह की पत्नी का नाम नीलम सिंह है।
मधुसूदन सिंह अपनी प्रारम्भिक शिक्षा नाना जी के यहाँ प्राप्त करने के पश्चात सीता उच्च विद्यालय हरिहरगंज पलामू,झारखंड से दसवीं तथा मगध यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल की। चुकि परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं होने के कारण शुरुआती दिनों में उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। जिसके कारण वे स्नातक की उपाधि हासिल करने के तुरन्त बाद पाँच वर्षों तक परिवार से दूर रोजगार की तलाश में दिल्ली में भटकते रहे और एक संस्थान में नौकरी करते हुए सम्पूर्ण उत्तर भारत का दौरा किया। वर्तमान में वे राँची स्थित एक निजी संस्थान में कार्यरत हैं। वे बचपन से ही नाट्यमंच से जुड़े रहे मगर जीवन की आपाधापी में वे साहित्य से दूर हो गए। कहते हैं जिसके नस नस में साहित्य समाया हो भला वह कबतक अपने आप को लेखनी से दूर रख पाता है। आखिरकार वे सन 2017 में वर्डप्रेस से जुड़े और वे आज करीब 500 सौ से ऊपर कविताएँ लिख चुके हैं। और आज उनकी पहली काव्य संग्रह ‘अफसाने तेरे पन्नों में’ प्रकाशित हुई है।
Title: Afsane Tere Panno Mei
Product ID: 195201-1335597-NA-NED-T0-NIKI-REG-IND-DIY
ISBN: 9781648995057
Format: Paperback
Date of Publication: 30-05-2020
Year: 2020
Page: 94
Price: ₹120
बात है मई 18 की। ऐसा बहुत कम ही होता था कि मुझे जल्दी नींद आ जाए पर उस रात मुझे 9 बजे से ही नींद आ रही थी। पर अफसोस सो नहीं पा रहा था। पता नहीं क्यों???
करीब 12बजे होंगे मेरा मोबाईल वाईबरेट करता है और मैं जैसे ही मोबाईल हाथ में लेता हूँ तो स्तब्ध रह जाता हूँ।
हड़बड़ा कर फोन उठाया
“हैलो….!!!!”
आवाज आती है
“कैसे हो…???”
मैं उससे पूछता हूँ
“सब ठीक तो है”
उधर से आवाज आती है
“मुझे क्या हुआ है”
मैंने कहा उससे
“तो आज अचानक से मुझे कैसे याद किया”
वो कहती है
“मेरी मर्जी, मेरा फोन है”
इतना कह वह जोर से हँसने लगी
मैंने कहा
“वाह जी, मेरा डासलॉग मुझे ही सुना रही हो”
तब वह बहुत ही प्यार से कहती है
“मैं भी तो तुम्हारी ही हुआ करती थी ना कभी, हाँ अब बात नहीं होती है तो इसका मतलब ये नहीं ना कि कोई मेरी जगह ले ले।”
मैं यह शब्द सुन खामोश हो गया।
और काफी देर के लिए चुप हो गया और उसकी साँसों को सुनने लगा।
वह भी चुप थी फिर अचानक से कहती है
“अब बस भी करो मेरी साँसों को सुनना इत्ते दिनों बाद फोन किया है। कर लो न आज पुरी रात मुझसे बात”
मैंने कहा
“तुम्हें कैसे पता मैं साँसें सुन रहा हूँ”
हंसते हुए कहा उसने
“तुम भी ना पागल भुलक्कड़ हो गए हो
जब हम पास होते थे तो मैं तुम्हारे सीने पर सर रख तुम्हारी धड़कन सुना करती थी और जब दूर रह फोन पर बातें किया करते थे तो तुम चुप रह मेरे साँसें सुना करते थे न। बस महसूस किया अब भी तुम वही कर रहे हो। तुम्हें कुछ याद ही नहीं रहता है अब सब भुल गए हो। बादाम खाया करो समझे मोटु। लेकिन अब ये मत कहना की मम्मी मुझे नहीं देती है। यह सब तुम्हारी बहानेबाजी है”
मैंनें कहा
“नहीं कहुंगा यार, पर मुझे बादाम अच्छा ही नहीं लगता है तुम्हें भी पता है खैर छोड़ो ये सब। तुम्हें सब याद है बस मुझे ही भुल बैठी थी”
वह चिल्ला कर कहती है
“कुछ नहीं भुली थी बस वक्त सही नहीं था और तुम्हारी आदत छुड़वानी थी। जो तुम्हें मेरी हो गई थी। अब बताओ भी यार कैसे हो? कहाँ हो? तुम्हारा समोसा खाना कम हुआ या नहीं? मिल्किबार तो छुटी होगी नहीं ये तो दावे के साथ कह सकती हूँ। मुझसे ज्यादा प्यार तुम मिल्किबार से करते थे और आज भी करते होगे ही। हुह😏
तुम्हारी तबीयत कैसी है??? दिल की धड़कन कैसी है? सही हुई या पहले जैसी ही तेज रहती है? देर से अब भी सोते होगे या नींद की दवा ले कर ही सोते हो? तुम्हारा इन्हेलर छुटा या नहीं? खाने में भी वहीं पछत्तर नखड़े होंगे? पानी पीना भूल ही जाते होंगे? यार तुम चुप क्यों हो? कुछ बोलो न मेरा शैंकी? इत्ते दिनों बाद फोन किया है और तुम हो की बोलते ही नहीं।”
मैं कहता हूँ
“क्या कहूं पगली बस खुद को यकीन दिला रहा हूँ कि तुम ही हो फोन पर, पर कैसे? और क्युं? मैं तुम्हारे सवालों का जवाब दूं या अपने सवालों का जवाब माँगुं?
मुझे बीच में ही रोकेते हुए
“मेरा बच्चा तुम चुप रहो, मैं सब कुछ कहती हूँ। बस शांति से सुनो जो तुम्हें सबसे अच्छा लगता है।
मैंने बहुत पहले तुम्हारी लिखी किताब ‘यादों के पन्नों से‘ मंगवाई थी पर कभी हिम्मत नहीं हुई उसे पढ़ने की। क्योंकि पता था मुझे मैं जब भी पढ़ुगी खुद को रोक नहीं पाऊंगी तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम फिर बाहर आएगा और मैं फिर कमजोर हो जाऊंगी। और हुआ भी एैसा ही। आज सुबह कमरे की सफाई कर रही थी तभी मुझे तुम्हारी किताब नजर आई। और रोक नहीं पाई पढ़ने से खुद को। फिर क्या पढ़ते ही आँखों से आँसू बहने लगे। पहले बहुत गुस्सा आता था जब तुम मरने की बाते करते थे लेकिन आज जब मैंने तुम्हारी लिखी ‘मेरी अंतिम यात्रा‘ को पढ़ा तो खुद पर अफसोस हुआ की मैं बे-वजह तुम पर गुस्सा करती थी। हर एक शब्द सत्य है और अटल सत्य है। जिसे कभी कोई झूठला नहीं सकता। हमें आज नहीं तो कल इसे स्वीकार करना ही होगा तो आज क्यों नहीं? हर एक लाईन तुम्हारी किताब का जबरदस्त है। तुम्हारी किताब मेरी पनीर चिल्ली की तरह है। हर लाईन में कुछ नया है। “
बीच में रोकते हुए
“चुप रहोगी पागल। ये सब मत बोला करो मुझे पसंद नहीं है। गर कोई कमी है तो बोलो उसे सुधारूगा।”
वह कहती है
“नहीं मेरा बच्चा कोई कमी नहीं है। हर चीज पूरी है चाहे वो रोटी हो, या गरीबी हो, या दोस्ती हो या एक कहानी हो। सब सही है। तुम खुद अंदाजा लगा लो मेरे पागल बच्चा मैं पढ़ तुम्हारी किताब को रोक नहीं पाई। अब चलो मुझे जल्दी से बताओ। अपनी तबीयत के बारे में।”
मैंने कहा
“यार तबीयत का क्या है। कभी ठीक रहती है तो कभी नहीं रहती, लेकिन मैं ज्यादा सोचता नहीं हूँ। शरीर है ये सब तो होता ही रहेगा। मेरी लापरवाही जो है। हाँ आज भी मिल्किबार रखता हूँ पर खाता नहीं हूँ क्योंकि डरता हूँ कि कहीं खत्म न हो जाए। रही बात समोसे की तो वो अब भी खाता हूँ लेकिन घर का बाहर का खाना तो छोड़ ही दिया हूँ। घर के खाने से प्यार करने लगा हूँ इसलिए किसी भी चीज को ना कहना ही छोड़ दिया हूँ। और बात धड़कन की तो वो बस की नहीं मेरे। कंट्रोल में ही नहीं रहती मेरे। और इन्हेलर तो छुट ही गया था लेकिन वक्त बे वक्त लेना ही पड़ता है उसे, बाकी सब सही है कोई तकलीफ नहीं है खुश हूँ जो है उसी में। तुम अपना बताओ। खाना खाया या नहीं?”
वह बड़े प्यार से कहती है
“आज सुबह से नहीं खाई हूँ। दिन भर तेरा ही ख्याल आया है। और बिल्कुल भी भूख नहीं लगी और न पानी पीने कि इच्छा हुई है। बस शाम को मैं पापा से मिल्किबार और लिटिल हर्ट मंगवा। सोचा तुमसे बात कर खाऊंगी। पर अफसोस मिल्किबार नहीं मिला। वैसे मेरा भी सब सही ही है। तुम्हारी बातों मे ही जीती हूँ और जो-जो सिखाया था तुमने वो सब पूरी करने की कोशिश में लगी रहती हूँ। सिर्फ अपने करियर पर ही फोकस है।”
मैंने अचानक से उसको रोका
“सुनो न….एक बात कहनी है”
बहुत ही प्यार से उसने कहा
” बोलो न मेरी जान क्या हुआ”
मैंने कहा
“यार सुसु आई है…..तुम फोन मत रखना मैं तुरंत आता हूँ”
उसने जोर से हँसते हुए कहा
“ठीक है मेरा बच्चा जाओ वैसे भी एक घंटा होने को है फोन खुद ब खुद कट ही जाएगा। तुम जल्दी आओ तब तक मैं पानी भर आती हूँ किचन से और कुछ खाने का भी ले आती हूँ। फिर हम पूरी रात बात करेंगे”
मैंने कहा
“ठीक है जी” कह मैं फोन कट कर टॉयलेट चला गया।
मन में सवालों का बवंडर सा आन पड़ा। क्युं फोन की, क्या काम है उसे, क्या फिर से वह मेरे साथ रिश्ता रखना चाहती है, वगैरा-वगैरह।
अचानक धड़कन तेज हो गईं। कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। मैं चुप होकर डाईंनिग हॉल में ही बैठ गया। ग्लास में पानी ले हजारों सवालों से झूझ रहा था। तभी मन में खयाल आता है “जो होता है होने दो, तुम अपनी ओर से कुछ न करो। गलत तुम करोगे नहीं गलत तुम्हारे साथ होगा नहीं। अपनी मौज में रहो।” ग्लास का पानी खत्म कर कमरे की तरफ बढ़ा और बंद कमरा कर फोन देखा तो 7मिसड कॉल नजर आए। तब तक फिर कॉल आ गया।
जैसे ही फोन उठा “हैलो” बोला।
उधर से गुस्से का बाँध टूट पड़ा।
लगातार 15मिनट तक डाँटना। और कहना
“अब कुछ बोलोगे भी या मुंह ही बंद रखोगे।”
हंसते हुए मैंने कहा “बस हो गया, सबर का बाँध टूट गया तुम्हारा। सुसु कर 2मिनट बैठ पानी क्या पीने लगा तुम से तो रहा ही नहीं गया”
यह बात उसके दिल को मानो जख्मी कर गया हो।
फिर क्या पसर गया एक सन्नाटा, हर वक्त की तरह मैं भी खामोश वह भी खामोश हो एक दूसरे के साँसें सुन रहे थे, हम काफी देर तक ऐसे ही थे।
फिर अचानक से वह कहती है
“सुनो न”
मैंने कहा
“कहो न जी”
वह हँसते हुए कहती है
“चलो न चाँद को देखते है”
कहा मैंने
“जरा ठहरो जी, खिड़की खोल टेबल से सारा सामान हटाने दो। फिर इत्मिनान से बैठेगें।”
वह कहती है
“ठीक है, लेकिन जल्दी”
मैंने कहा
“जल्दी क्या ,कौन सा चाँद भागे जा रहा है”
तब वह मुँह बना कहती है
“अरे नहीं,लेकिन फिर भी तुम्हें तो पता है न मुझमें सबर कितना है।
मैं गुस्से में कहता हूँ
“हाँ- हाँ इसलिए तो मुझे छोड़ गई”
उसने दबी आवज में बोला
“फिर वही बात यार, मैं भुखी हूँ मुझे खिलाओ न अपने हाथो से ताकि मैं तुम्हारी ऊंगलीयों को काट सकुं”
मैंने चिल्लाते हुए उससे कहा
“खिलौनों से खेला करो,इंसानो से नहीं,मैं इन सब से आगे बढ़ चुका हूँ”
वह भी झुंझलाते हुए बोली
“अब बस भी कर झूठा, आगे बढ़ गया है इसलिए तो यादों के पन्नों को सजाए फिरता है, न खुद चैन से जीता है न मुझे जीने देता है, लाख बार कहीं हूँ शैंकि बड़ा हो जा बड़ा हो जा, लेकिन सुनना ही नहीं है, अब चलो जल्दी से खिला दो न अपनी जान को, भूखी है तेरी किताब कि वजह से, तेरी अंतिम यात्रा पढ़ तेरे पास आई है बस एक रात के लिए वो भी चाँद के साथा………”
कहते कहते उसकी आवाज लड़खड़ाने लगी। और उसकी आँखों कि बारिश ने मेरे दिल को भीगो दिया।
मैं चुप करा उसे उसके दिल को तसल्ली देते हुए खिलाया। और वही उसकी पुरानी आदत पुरा मुँह भर के खाना और खाते हुए बोलना, और सच्ची पहले की ही तरह इस बार भी मुझे कुछ समझ नहीं आया वो बोल रही है, बस उस पागल की खुशी के लिए हाँ हाँ करता गया।
खाने के बाद पता नहीं क्या हुआ। उसने मुझे गोद में सुलाया और अपनी बातों में मसहुल कर दिया। चाँद देखता रहा और उसकी बातें चुप हो सुनता रहा, ज़िंदगी को जीने का तरीका सीखा रही थी।
अचानक उसने मुझसे पूछा “चाँद दिख रहा है या नहीं?” मैंने कहा “नहीं वो तो थोड़ी देर पहले ही गायब हो गया नहीं दिख रहा है”
गुस्से में वो बोली
“तो बोला क्युं नहीं मुझे, अब उठो टेबल से और छत पे जाओ और देखो चाँद को, तभी बातें करूँगी”
उसकी ये बात सुन के अजीब लगा और कहा मैंने
“अबे पागल औरत, दिमाग सही है न ,मेरी मम्मी टाँग तोड़ देगी और तो और मुझे डर लगता है इसलिए मैं नहीं जाऊंगा”
इतना सुन वो फिर जोर-जोर से हँसने लगी
और कहती है “ठीक है मेरा बच्चा”
फिर हम दोनों भविष्य की बातों में खो गए और पता ही नहीं चला कब सुबह हो गई और चिड़िया की चहचहाहट सुनाई देने लगी दोनों को।
और यह आवाज कानों को तो अच्छा लग रहा था पर दिल को मानो कचोटते जा रहा था। क्योंकि यह आवाज विदाई की बेला पास ला रही थी।
सुबह के सूरज के साथ हम दोनों ही जुदा होने वाले थे।
तभी वह कहती है “चलो न शैंकि, साथ में सूरज देखते हैं “मैंने कहा “कौन सा सूरज, डुबता हुआ सूरज” उसने कहा “नहीं जी उगता हुआ” मैंने कहा “हाँ वही यार डुबता हुआ ही”
इतना सुनते ही उसकी आँखों से आँसू बहने लगे और आवज में फिर से लड़खड़ाहट सुनाई देने लगी।
और कहा उसने
“मेरी जान रोना बंद करो और दर्द के हर अल्फाज को जिंदा रखो
अपनी डायरी मे उन तारीखों के साथ। माना की वो काली कलम तुम्हारे पास नहीं पर फिर भी जो है उसी के सहारे उसे उकेरा करो, चलो चलती हूँ”