The Last Page of Life is a very good book. If you want to read a heart of Woman, then I will highly recommend you this outstanding book because the topics are very real and you will surely get answers to your questions. If you are down in your life, then go ahead with this book. It’s a good book to read in a poetic way with some deep & truly divine quote.
पूरे साल महिलाओं को आहत करना उसके होंठों को चुमने की कोशिश करना स्तनों को घूर कर आँखों की तपिश मिटाना चिकनी-चुपड़ी बातों में फसा बिस्तर तक लेटाने का ख्वाब सजाना…… और बस एक दिन चंद कविताओं से महिलाओं के जख्मों पर मरहम लगा फिर अपनी औकात दिखाना है
सुना था कुत्ते हड्डीयों पर मरते हैं पर देखा है कुछ हैवान मेरे जिस्म को नोचने के लिए जीते हैं खैर छोड़ों महिला दिवस की शुभकामनाएं तुम सभी को हम लेट से देते हैं
ना चाहते हुए भी वे छोड़ कर गए हमें शायद उनकी मजबूरी थी या कहूँ तो मेरे विधाता की मर्जी थी, पकड़ उंगली चलना सिखाया था मुझको डांटकर ज़िन्दगी में जीना सिखाया था मुझको पढ़ा लिखा काबिल बनाया मुझको पैरों पर खड़ा कर जिम्मेदार बनाया मुझको सब कुछ सिखाकर ना जाने क्यों छोड़ गए वे मुझको, किससे कहूँ और कैसे कहूँ और कहां कहूँ अपने आँसू छुप छुपाए फिरते हैं हम आपके बाग का फुल था मैं मुरझाया मुरझाया फिरता हूँ मैं काश तुम वापस आ जाते या थोड़ी देर और ठहर जाते, कैसे कहूँ पापा तुम मुझे छोड़ कर ना जाते, कागज पर हम स्याही चला देते हैं आपके जाने के दर्द को हम कैद कर रख देते हैं पेड़ की छांव हटते ही सुकून चला जाता है पापा आपके जाने से ये बच्चा तड़पता सह रह जाता है, दिन थम सा गया है और रात का चाँद मानो जम सा गया है घड़ी की सूई को भी पीछे घुमा कर देख लिया पर पापा आपका साया मुझको नज़र ना आया तन्हा ये मंज़र है ख्वाब अब सारे बंज़र है, कहते हैं लोग जो आया है वो तो जरूर जाएगा वक्त के साथ सब बदल जाएगा पर भला आपकी कमी कौन भर पाएगा,
भरे कंठ लिए जब भी पापा कहता हूँ भारी दिल लिए अपने शब्दों के साथ आपको श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ
The 14th February & Beyond is an award winning documentary film by Utpal Kalal. Recently premiered at the 51st International Film Festival of India. IFFI Goa.
The first ever – and deepest look into Valentine’s Day. This is a documentary film that exposes the strange face of this global love fest and its impact on the mental health of our society. The filmmaker explores the origins of this famous holiday, and how it’s been twisted as a result of consumerism and commerciality into a competition and self-esteem checklist. While disguised as a celebration of love, spanning days of gifts and adoration in some cultures, Valentines Day can actually often lead to some very dark memories, humiliation and rejection, and self-esteem crises for others. We reveal the shocking facts about the commercialisation of Valentine’s Day – the spending and traditions that have been overlooked until now; as well as bringing forth a comprehensive view of the subject through experts from various fields into this eye-opening narrative – that we all have an opinion on – no matter what!
Awards- -Riverside International Film Festival, California, USA Winner, Best Documentary Film, Audience Choice Award -Jaipur International Film Festival, India Winner, Best Film award (Documentary Feature)
Nominations- – 51st International Film Festival of India (IFFI) (Indian Panorama) -Indian Film Festival of Melbourne, IFFM, Australia -San Diego Comic Con International Independent Film Festival, USA -Millenium International Documentary Film Festival, Belgium Official Selection, Youth Vision Competition -Mumbai International Film Festival, India Nomination, Best Documentary, Silver Conch Award -UK Asian Film Festival, Middlesex, United Kingdom -Indian Film Festival of Houston, Inc, Texas, USA
अकड़ना कभी सिखाया नहीं इन्होंने ना झुकना सिखाया कभी सिखाया तो सिर्फ अपनी मौज में रहना
एक वाक्या याद आ रहा है रात को वो आ ही गई थी मुझको साथ ले जाने वाली ही थी दवा ने भी अपना असर है छोड़ा था दर्द ने जो साथ पकड़ा था काफी दिनों के बाद मेरे दिल में दर्द उठा था बाहर पेड़-पौधे बारिश में भीग रहे थे इधर मैं पसीने से भीगा हुआ था नींद तो ऐसी रुठी थी दवा लेने के बाद भी मुझसे दूर बैठी थी हर कोई श्री कृष्ण के जन्म की तैयारियाँ कर रहा था मैं लेट अपनी धड़कनों को गिन रहा था पर माँ वो तुम ही थी ना जिसने श्रीकृष्ण के मूर्ति की पूजा छोड़ “वासुदेवम् स्वं इति” (वासुदेव तो हर जगह है) मुझे गोद में सुलाया था मेरे दिल पर हाथ रख “गोविंद हरे गोपाल हरे जय-जय प्रभु दिन दयाल हरे” गाकर मेरे दर्द को दूर कर रहीं थीं माँ तेरे थपकियों ने ही मुझको सुलाया था कल तक चलना तो दूर मुँह से आवाज तक नहीं ले पाथ रहा था
अरे ओ जनाब यह कोई सपना नहीं है माँ बाप सा कोई अपना नहीं है
महादेव जी का पड़याँ पड़ी थी तेरी माँ ने पाने को तुझको पर तूने ……. यार लगा के देखो ना गले तुम एक बार खुशियाँ मिलेगी तुझको अपरम्पार
मैं कैसे करूँ ना भरोसा उनका जिन्होंने पाला तुमको है और तूने उसे ही निकाला घर से हैं
यकीनन तुम जमाने के नजरों में अच्छे रहो या ना रहो पर अपने माँ-बाप के नजरों में कभी बुरा बन के ना रहो
हजारों जिम्मेदारियों को त्याग देना पर माँ-बाप छोड़ शहर के तरफ पाँव मत बढ़ा देना एक उमर तो बितने दो जनाब खुद-ब-खुद एहसास हो जाएगा माँ बाप की कही बातों का
वो घर कैसा होगा? जिसकी आँगन सुनी होगी रसोई में बरतन टकराने की आवाज तक नहीं आएगी देर से उठने पर डॉट नहीं पड़ेगी आँचार बाजार से खरीद खाना होगा यार बेजान सी लगेगीं वो घर कल्पना मात्र से रूह काँप उठती है शौक तो बाप की कमाई से पूरी होती है खुद के पैसे से तो बस जरूरतें ही पूरी हो सकती हैं ताउम्र बचपन रह जाएगा गर तू माँ-बाप संग ज़िन्दगी बिताएगा वो कहते हैं ना उमर का फासला है या कहूँ तो उमर का फैसला है हर किसी ने अपनों पर अपना अधिकार जमाया है बड़े होकर हर चिड़िया ने अपना रास्ता बनाया है
हर हाल में जीना सिखाया है कभी बोझ नहीं समझा है हमें माँ-बाप ने पर ना जाने क्यों हमें माँ-बाप बोझ लगते हैं बच्चे माँ-बाप के साथ अब नहीं रहतें बल्कि अब माँ-बाप बच्चों के साथ रहते हैं अपनी चाहतों को राख बनातें हैं इच्छाओं को खाक करते हैं वो और कोई नहीं हमारे अपने माँ-बाप होते हैं ज़रा-ज़रा सी बात पर वो साथ छोड़ देते हैं वो मतलबी रिश्तेदार, दोस्त, साथी…. पर एक माँ-बाप ही हैं जो शरीर छोड़ने के बाद भी साथ नहीं छोड़तें धन लाख करोड़ तूने क्यों ना कमाया हो पर माँ-बाप को भुला कर सब कुछ तुने गवाया है
घर में सेवा माँ बाप कि कर के तो देखो पीछे पीछे हरि फिरते दिखेंगे वो माँ पुराने ख्यालातों कि लगती है जिसने तुम्हें काबिल बनाने के लिए अपने माँ बाप के दिए जेवर गिरवी रख दिये थे क्यों अपने शब्दों से उनके सिने को छलनी करते हो जड़ों को काटोगे तो फल कहां से होगे पानी सींचों जड़ में माँ बाप को गले लगा देखो सारी अलाएं-बलाएं चलीं जाएगी और हरि पीछे पीछे आ जाएगें दवाओं में भी वो असर नहीं है जो माँ बाप की दुआओं में है जग की कितनी भी सवारी क्यों ना कर लो बाप के घोड़े की सवारी कहीं नहीं मिलेगी कितनी भी महंगे तकिये में क्यों ना सो लो माँ के गोद जैसे सुख कहीं नहीं मिलेगा सिखाते है माँ बाप मुझको रखो ना गाँठ तुम मन में ना तन में ग़र जीना है तुमको खुल के तो ना मान दिया ना दिया कभी अपमान माँ-बाप ने बस सिखाया है जहर कि पुड़िया है ये मान-अपमान हर हाल में मुस्कुराना सिखाया है
हे राम पता नहीं क्यों हम ऐसा करते जा रहे हैं जिन्दगी जन्नत है उनकी जिन्होंने माँ बाप के सिखाये रास्तों पे चला है जिस तरह राम जी हमारा बुरा नहीं कर सकते है ठीक उसी तरह माँ बाप हमारा बुरा नहीं कर सकते है गुलाबों की तरह महक जाओगे गर माँ बाप के संस्कारों को अपनाओगे ये रिश्ता गजब है जनाब तकलीफ तुम्हारे देह को होगी पर दर्द माँ बाप को महसूस होगी यार कृष्ण भी श्री कृष्ण तो माँ बाप से ही बने है राम भी श्री राम माँ बाप से ही बने है। तुम भी बन सकते हो हम भी बन सकते हैं महान ग़र ख्याल रख लिया माँ बाप का तो एहसानों वाला नहीं प्यार वाला माँ बाप के रहते ना किसी ने परेशानी देखी जब गुजरे माँ बाप तो ना रहा चेहरे पर मुस्कान ना देखा मुसीबतें ना रहा…….. क्यों मंदिरों मस्जिदों में ईश्वर, अल्लाह को खोजते हो
ये हमारा हंसना, गाना लिखना खेलना, कूदना, सोना सब उनसे ही तो है माँ बाप साथ हो ना तो बेफिक्री खुद-ब-खुद साथ आ ही जाती है वर्ना देखो उन्हें जिनके सिर से माँ का आँचल हट जाता है या पिता का साया हट जाता हो क्या हाल हो जाती है उनकी बस जिस्म रह जाता है जरूरत पड़ने पर एक माँ भी पिता का फर्ज निभाती है और पिता भी माँ का पता नहीं यह अलौकिक शक्ति कहाँ से आती है बच्चे होते हुए हमें कद्र नहीं होती माँ बाप की जब हम भी माँ बाप होते तो बच्चे करते नहीं कद्र हमारी ये सिलसिला चलता आ रहा है सब कुछ मालूम होते भी हम खुद को पतन के रास्ते ले जा रहे हैं
जामाने को कठोर कहते हो माँ के कोमल हृदय को छोड़ उसे जमाने में फंसे रहते हो माना की पिता की बात नीम जैसी कड़वी है पर यार सेहत के लिए तो वही अच्छी है सिखाया था मेरे राम जी ने मुझको हर चाहत के पीछे मिल दर्द बेहिसाब है पर एक माँ बाप ही हैं जो ग़र साथ हो ना तो वहाँ दर्द का नामो निशां नहीं है ज़िन्दगी की जंग मौत से लड़ कर मैं पड़ा था बेड पे गुरुग्राम कि अस्पताल में जिंदा लाश बन के वो पिता ही जो टूट चुके थे लेकिन आँखों से आँसू छुटने नहीं दिया हाल मेरा बेहाल देख मुझसे पूछा नहीं डर था उन्हें, कहीं उनके आँसूओं को देख मैं टूट ना जाऊँ डाक्टर थक गए थे मेरे हृदय की गति को सामान्य करने में पर वो पिता ही थे जिन्होंने मेरे हृदय पर हाथ रखते ही उसे सामान्य कर दिया था 5 दिन से नींद मुझसे रूठी थी माँ की थपकियों और लोरियों ने मुझे सुकून का नींद दिलाया था क्या कहूँ मैं जनाब यार ये साँसे है तो उन्हीं की अमानत
कितनी आसानी से कह देते हैं हम समझते नहीं है माँ बाप हमारे पता नहीं हम ये बात समझ क्यों नहीं पाते हैं बड़े क्या हो गए हम मानो पंख ही आ गए चलना क्या सीख लिया उनकी उंगली पकड़ कर उड़ना ही शुरू कर दिया हमनें रास्ता दिखाया माँ बाप ने और व्यवहार हमारा ऐसा जैसे खुद ही बनाया रास्ता हमनें किसी शख़्स ने बहुत खूब लिखा था खुली आँखों से देखा सपना नहीं होता माँ बाप से बढ़कर कोई अपना नहीं होता
वो बाप ही जनाब जो भरे बाजार में अपनी पगड़ी उछलने ना देगा पर अपने बच्चों की खुशी के खातिर ही भरी महफ़िल में भी अपनी पगड़ी किसी के पैरों पे रख देगा अपनी खुदगर्जी के लिए वो बच्चे बाप को भी भरे बाजार में गलत कह देगा जीवन के एक पड़ाव में जरूरत होती है माँ-बाप को हमारे एहसानों की नहीं हमारे प्यार की जिसने हमें हर आभावों से दूर रख काबिल बनाया उन्हें ही हम आभावों में रख रहे हैं अपने चार दिन के मोहब्बत के खातिर हम तमाशा कर देते हैं उनका जिसने हमारे जन्म से पहले ही ताउम्र हमसे मोहब्बत की सौगंध खाई थी
जब माँ बाप साथ हो ना तो किसी भी चीज कि परवाह नहीं होती उनके होने से ही हर दिन होली लगती है हर रात दिपावली लगती है और ना हो ग़र माँ बाप तो पूछो उनसे होली भी बेरंग सी लगती है दिपावली भी अंधियारा सा लगता है आँखों में आँसू और मन भारी सा लगता है क्या मंदिर मस्जिद भटका है वो क्या स्वर्ग कि चाहत होगी राम जी उन्हें माँ बाप मिले हैं जिन्हें चरणों में ही माँ बाप के बैकुंठ होगी पता नहीं राम जी वो औलाद कैसी है जो सफलता की शिखर पर पहुंच कर पूछता है माँ बाप से तूने किया ही क्या है मेरे लिये बस राम जी यही कारण है उसके पतन का कहता है वो औलाद जो भी किया वो तो फ़र्ज़ था पर कैसे समझाऊँ मैं उनको यार कम से कम माँ बाप ने फ़र्ज़ तो पूरा कर दिया पर तुमने क्या किया यक़ीनन दुनिया में बहुत सी चीजें अच्छी है पर सच कहता हूँत मैं हमारे लिए तो हमारे माँ बाप ही सबसे अच्छे है
खुशियां ज़िन्दगी में कम होती जा रही है दो रोटी के लिए हम माँ बाप से जो अलग होते जा रहे है माँ बाप के प्यार जैसे प्यारा और कुछ नहीं लगता है माँ बाप के चेहरे में खुशियां आसानी से दिख जाती हैं पर ज़ख्मों का दाग दिख नहीं पाता है अपने संस्कारों से हमारी हिफाज़त करने का संकल्प जो लिया है उन्होंने अपनी जान से भी ज्यादा हमको चाहा है हम सबने सत्यवान और सावित्री कि कहानी सुनी ही होगी की यमराज से भी अपने पति की प्रारण ले आती है पर यह तो माँ बाप है जो मृत्यु तो बहुत दूर कि बात है यह तो संकट को भी पास भटकने ना दें ऐसा अद्भुत प्रेम है इनका पिता हमारी खामोशियों को पहचानते हैं माँ हमारे आँसूओं को आँचल में पिरोती हैं बिन कहें ही हालातों को हमारे अनुकूल कर देते है
जरूरतें अपनी भुला कर हसरतें मेरी पूरा करते थे वो और कोई नहीं मेरे मेरे पिता थे मेरी चीखों को मेरे आँसूओ को वो मुस्कान में बदलती थी आज जब वो बूढ़ी हो गई है तो ना जाने क्यों हमें उसके जरूरतें कि चीख-पुकार कानों तक नहीं रेंगती है यक़ीनन बेटा अब बड़ा हो गया है पैरों पर खड़ा हो गया है जमाने की चकाचौंध में वो अपने माँ बाप को भूल गया है अरसा बीत गया होगा माँ की गोद में सोए हुए पर कोई बात नहीं जब माँ सदा के लिए सोएगी ना तब हमें उसके गोद की कमी खलेगी एक अनुभव लिखता हूं मैं करीब नौ-दस घंटे मैं जंग लड़ रहा था हाँ वही मृत्यु से दुआओं का दौर चल रहा था मेरे अपनों का जंग करीब करीब जीत चुका था खबर भी फैल गई थी जंग में जीत हो गई है लोग अपने अपने घर चल दिए थे कुछ लोगों ने खाना खा लिया था तो कुछ सो चुके थे पर कुछ ही देर में बाजी पलट चुकीं थी मृत्यु ने प्रहार शुरू कर दिया था सफेद चादर से मैं लिपटा था पल भर में ही खून के फव्वारों से वो लाल हो गया हार चुका था मैं शायद मर चुका था मैं जिंदगी की जंग को चीखता रहा मैं चिल्लाता रहा मैं पर मृत्यु ने अपनी पकड़ नहीं छोड़ी मेरे शरीर से मेरे प्राणों को खींच कर अलग करने ही वाली थी कि तभी ईश्वर के दूत आए हाँ माँ पापा आए माँ मुझको देख हैरान तो हो गई थी पर मृत्यु उन्हें देख परेशान हो गई थी पापा ने तुरंत ज़िंदगी के कागज पर दस्तखत कर जीत का आदेश लिखा फिर क्या मृत्यु को इजाजत ही नहीं मिली और खाली हाथ उसे वहाँ से लौटना पड़ा कहाँ ना मैंने बहुत पहले जिनके सिर पर माँ-बाप का हाथ होता है वहाँ पर मृत्यु को भी इज्जात लेनी पड़ती है
साँसे रुक जाती है ना उनकी सुकून की नींद उड़ जाती है हमारी पिता कि साया हटते ही बच्चे खुद-ब-खुद बड़े हो जाते है माँ के गुजरते ही बच्चे तकिये में मुँह छुपा रोते रह जाते है जमीन के टुकड़े के लिए हम माँ बाप के दिल के हाजारों टुकड़े कर देते है गरीबी सताती जरूर थी पर हमारा पेट भर वो खुद भूखा रहती थी तो वो और कोई नहीं हमारी माँ ही थी हम कैसे खुश रहे इस सोच में ही तो माँ बाप सारी जिंदगी गुजारते हैं धन लाख करोड़ कमाया है माँ बाप को खुद से दूर कर तूने असली पूंजी गवायाँ है खाया है मैंने माँ के एक हाथ से थप्पड़ तो दूजे से घी वाली रोटी याद है मुझे वो रात भी जब खुद की नींद उड़ा कर गहरी नींद में सुलाती थी खुद गीले में सो कर मुझको सूखे में सुलाती थी
माँ की ममतामयी आँखों को, भूलकर भी गीला ना करना और माँ की ममता का पिता की क्षमता का अंदाजा लगाना असंभव है उंगली पकड़ कर सर उठा कर चलाना सिखाया है पिता ने अदब से नज़रें झुका कर चलना सिखाया है माँ ने सब सिखाया है माँ ने हौसला भरा है पिता ने यश और कीर्ति दिलाया है पिता ने माधुर्य और वात्सल्य दिलाया है माँ ने कर्ज लेना कभी नहीं सिखाया आपने पर ना जाने क्यों हमें आपने कर्जदार बना दिया है जिसे इस जन्म में तो पूरा करना संभव ही नहीं है जब तक साँसे है तब तक कर ले ना प्यार उनको
निकल रहा था मैं वृद्धाआश्रम से गुजरते देखा मैंने एक औरत को वृद्धाआश्रम के बगल से शुक्रिया अदा कर रही थी वह ईश्वर को रहा न गया मुझसे पूछ बैठा मैं “आप कौन हो” मुस्करा वह कह गई “एक बाँझ हैं”
गूगल के द्वारा पता चला है भारत में कुल 728 वृद्धा आश्रम हैं और 2 करोड़ अनाथआलय हैं
वो कहते हैं न कर्म का फल सबको भोगना ही पड़ता है…!! खैर छोड़ो तुम्हारी जो मर्जी हो करना बस हाथ जोड़ कहता हूँ सिर्फ एक बार सिर्फ एक बार हर दुआ में उसकी दुआ है जिसके सिर पर माँ की छाया है समझो ना वहीं पर खुदा का साया है काँटों को फूल बनाया है पिता ने हर मुश्किल राह को आसान जो बनाया है सोकर स्वयं गीले में, सुलाया तुझको सूखे में
मैं बहुत कुछ कहना चाहता हूँ हृदय की पीड़ा है जब सुनता हूँ बलात्कार हुआ, किशोराअवस्था में बच्ची गर्भवती हो गई, 17 साल की बच्ची का गर्भपात हुआ, इश्क कर बच्चे भाग गए…. अब आगे क्या कहूँ मेरे आँसू ही जानते हैं शायद माँ-बाप ने अच्छे संस्कार नहीं दिये होंगे इसलिए ऐसा हुआ होगा यह कह हम ही ऊँगली उठाते हैं
अच्छा छोड़ो ये सब बातें
ग़र तुम्हें एक साथ आँखों से सच देखना है और कानों से झूठ सुनना है तो किसी वृद्धा आश्रम जा कर वहाँ रहने वाले किसी से भी उनकी ख़ैरियत पूछ कर देखो तुम खुद-ब-खुद समझ जाओगे मैं कहना क्या चाहता हूँ और लिखना क्या चाहता हूँ
खैर छोड़ो तुम बड़े हो गए हो तुम्हारे पास वक्त कहाँ सच में अब तुम बड़े हो गए हो वक्त कहाँ है, बुढ़ापा आने में
मेरे इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं होगा पर मेरी पंक्तियों को पढ़ हर किसी के
आँखों से आँसू छलक ही जाएगा यार वो कितना भी पत्थर दिल क्यों ना हो वो एक ना एक पल पिघल ही जाएगा हमें जीवनसाथी तो हजारों मिल जाएंगे परन्तु क्या माँ-बाप दुसरे मिल पाएँगे ???
अब बेसरमों कि तरह हाँ मत कह देना हाथ दिल पल रख मैं कहता हूँ एक बार प्यार से माँ-बाप को गले लगा के तो देखो प्रेम दिवस उनके साथ मना के तो देखो सच कहता हूँ तुम निःशब्ध हो जाओगे जब माँ-बाप के हृदय से तुम्हारे लिए करुणा, माधुर्य, वात्सल्य छलकेगा न तब तुम्हारे रूह से आवाज आएगी
हो गए आज सारे तीर्थ चारों धाम घर में ही कुंभ है माँ-बाप की सेवा ही शाही स्नान है
मान लो मेरी बात
बाकी तो आप जानते ही हो क्योंकि सुना है आप समझदार हो
यही दिव्य प्रेम है मेरे शिव जी ने भी कहा है:- धन्या माता पिता धन्यो गोत्रं धन्यं कुलोदभवः धन्या च वसुधा देवि यत्र स्याद् गुरुभक्तता
जिसके अंदर गुरुभक्ति हो उसकी माता धन्य है, उसके पिता धन्य है, उसका वंश धन्य है उसके वंश में जन्म लेनेवाले धन्य हैं, समग्र धरती माता धन्य है
वैसे प्रथम गुरु कौन होता है हम सबको पता ही है तो कर लो न गुरुभक्ति उत्पन्न
बचपन में बच्चों कि तबियत बिगड़ती थी तो माँ-बाप कि धड़कनें बढ़ती थीं आज माँ-बाप कि तबियत बिगड़ी है तो बच्चे जायदात के लिए झगड़ते हैं हम प्रेम दिवस मनायेंगें माँ-बाप को भूल प्रेमी संग जिन्दगी बितायेंगे सच कहूँ तो, रूह को भूल जिस्म से इश्क़ कर दिखायेंगे पता नहीं माँ-बाप ने कैसे संस्कार हैं हमको दिये बड़े होते ही इतने बतमीज़ बन गए जिनकी कमाई से अन्न है खाया आज उनको ही दो वक्त की रोटी के लिए है तरसाया गूगल पर माँ-बाप की बहुत अच्छी और प्यारी कविताएँ मिल जाती हैं मुझको, पर पता नहीं क्यों मैं निःशब्ध हो जाता हूँ वृद्धा आश्रम की चौखट पर आ कर कर माँ-बाप का तिरस्कार वो मेरे राम जी के सामने आशीर्वाद हैं माँगते अब किन शब्दों में समझाऊँ में उनको ईश्वर ही हमारे माँ-बाप बनकर हैं आते अपने संस्कारों से जिसने हमें है पाला आज हमने अपनी हरकतों से जीते जी माँ-बाप का अंतिम संस्कार है कर डाला भरे कंठ लिए एक सवाल है गर माँ-बाप से मोहब्बत है तो वृद्धा आश्रम क्यों खुले हैं ????
हर रिश्ते में स्वार्थ देखा है हमनें एक माँ-बाप ही हैं जिन्हें निस्वार्थ देखा है वो बचपन में ही खुशियों के रास्ते खोल देते हैं हम बड़े हो कर उनके लिए ना जाने क्यों वृद्धा आश्रम के रास्ते खोल देते हैं पढ़ा-लिखा कर हमको काबिल बना देते हैं पर हम कभी उनके दर्द को पढ़ नहीं पाते हैं अपने अरमानों का गला घोट जिन्होनें हमे इंसान है बनाया हमनें अपनी इंसानियत को मार माँ-बाप की आँखों से आँसू बहाया है जिन्होंने हमको उंगली पकड़ चलना सिखाया है हमने उनको हाथ पकड़ घर से बेघर कर दिखाया अपनी ख़ुशबू दे हमको जिन्होंने फूल बनाया है हमने तो काँटे दे उनको रुलाया है जिसने काँधे पे बैठा हमें पूरा जहाँ घुमाया है उसे सहारा देने पे हमें शर्म आया है हमारी छोटी सी खरोंच पर उसने मरहम लगाया है हमने अपने शब्दों से ही उनके दिल में जख़्म बनाया है माँ-बाप ने हमें सुंदर घर बना कर दिया हमनें भी उनको बेघर कर अपनी औकात दिखा दिया….(आगे जारी है)
मेरी एक और नई किताब जिसमें 400 से अधिक कविता और कोट्स का संग्रह है इस पुस्तक में जिसे एक छोटी सी बात और उसमें बड़ी सी बात के रूप में लिखने की कोशिश किया है। आशा है आपको पसंद आएगी।
गीता केवल एक ग्रंथ या पुस्तक नहीं है अपितु जीवन जीने की कला है। गीता ऐसा अद्भुत ग्रंथ है की थके, हारे, गिरे हुए को उठाता है, बिछड़े को मिलाता है, भयभीत को निर्भय, निर्भय को नि:शंक, नि:शंक को निर्द्वन्द्व बनाकर उस एक से मिला के जीवन का उद्देश्य समझाता है।
गीता में अठारह अध्याय है जो हमारे जीवन के विकास के सर्वोपरी है। 1. अर्जुन का विषाद योग:- जब अर्जुन ने युद्ध के मैदान में अपने गुरु, मामा, पुत्र, पौत्र, ससुर, ताऊ, चाचा और मित्रो को देखा तो शोक करने लगे और मैं युद्ध नहीं करूँगा यह कह कर अपना धर्म का त्याग कर रथ के पीछले भाग में बैठ गए।
2. सांख्य योग:- श्री कृष्ण महाराज ने अर्जुन को ज्ञान योग के द्वारा समझाया की शोक करने योग्य मनुष्यों के लिए शोक करता है और वे पण्डतों के जैसे वचनों से कहतें हैं कि “ना तो कभी ऐसा था कि मैं किसी काल में नहीं था, और ना ऐसा कभी था कि तू नहीं या फिर ये राजाजन नहीं थे और ना ऐसा है कि इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे, तूझे भय नहीं करना चाहिए क्योंकि क्षत्रिय के लिए धर्मयुक्त युद्ध से बढ़कर दसूरा कोई कल्याणकार कतर्व्य नहीं है।”
3. कर्मयोग:- स्पष्ट शब्दों में ऋषिकेश महाराज ने समझाया है कौन से कर्म करने योग्य है और कौन से कर्म नहीं करने योग्य। और सबसे महत्वपूर्ण यह की कोई भी मनुष्य किसी काल में क्षण भर भी बिना काम किये नहीं रहता। शास्त्रविहित कर्म कर, क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेठ है।
इसी तरह ज्ञानकर्मसंन्यासयोग, कर्मसंन्यासयोग’ आत्मसंयम योग, ज्ञान विज्ञान योग, अक्षरब्रह्म योग, राजविद्याराजगुह्ययोग, विभूतियोग, विश्वरूपदर्शन भक्तियोग, क्षेत्रक्षत्रविभागयोग, गुणत्रयविभागयोग, पुरूषोत्तमयोग, दैवासुरसंपद्विभागयोग, श्रद्धात्रयविभागयोग, मोक्षसंन्यासयोग में श्रीकृष्ण महाराज ने केवल और केवल जीवन को जीने की कला ही सिखाई।
विश्व की 578 भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है। गीता किसी एक देश, जातियों, पंथों की नहीं है बल्कि तमाम मनुष्यों के कल्याण की अलौकिक सामग्री भरी हुई है। भोग, मोक्ष, निर्लेपता, निर्भयता आदि तमाम दिव्य गुणों का विकास करनेवाला यह गीताग्रंथ विश्व में अद्वितीय है। स्वामी विवेकानंद जी तो श्रीमद्भगवत गीता को “माँ” कहा करते थे। मदनमोहन मालवीय जी श्रीमद्भगवत गीता को “आत्मा कि औषधि” कहा करते थे। श्रीमद्भगवत गीता किसी धर्म, जाती, समुदाय, मजहब का पुस्तक नहीं है अपितु यह संपूर्ण मानव जाती के लिए है।
श्रीमद्भगवत गीता वह ग्रंथ है जो हमें सिखाती है “सुख टिक नहीं सकता और दुःख मिट नहीं सकता” मुझे लगता है कि गीता को हाथ में रखकर कसमें खाने से कुछ नहीं होगा अपितु गीता को हाथ में रखकर पढ़ना होगा।
गीता हमें युद्ध सिखाती है अपने दुश्मनों से और प्रेम करना सिखाती है अपनों से। लेकिन हम ही अपने दुश्मन है और हम ही अपने मित्र है। कोई बाहरी हमें आकर नुकसान नहीं पहुंचा सकता है जितना हम स्वंय को अपने विचारों से और अपनी वासनाओं से पहुंचाते है। इसलिए युद्ध तो जरूरी है लेकिन स्वयं से। जब तक खुद के रावण को नहीं जलाओगे तब तक राम से नहीं मिल पाओगे।
कहते हैं लोग नहीं है वक्त इसलिए पढ़ नहीं पाते हैं गीता को सच कहता हूँ वक्त नहीं है इसलिए तुम पढ़ा करो गीता को
इश्क नाम ले जज्बातों से खेल कर वह कितने ही मर्दों के साथ क्यों न सोए वो अबला ही कहलाएगी और ईमान से चंद रुपयों के खातिर वह कितने ही मर्दों के साथ क्यों न सोए वो वैश्या ही कहलाएगी
हमें खुशियाँ चाहिए ना घर में, ऑफिस में, दुकान में रोड पर हर जगह हमें खुशियाँ चाहिए ना बच्चों से, बड़ों से, पत्नी से, पति से, माँ-बाप से हर किसी से हमें खुशियाँ चाहिए ना हर पल, हर क्षण हम खुशियों के पीछे भाग रहे हैं पर क्या खुशियाँ हमें मिल रही हैं? शायद नहीं, क्योंकि पढ़ा हैं मैंनें और अनुभव किया हैं हर खुशी के पीछे ग़म की कतारें हीं है कमरे क्या है बन्द दीवारे ही है हक़ीक़त में जिसे हम अपना समझ रहे हैं और खुशियाँ चाह रहे हैं उनसे वहीं हमारे दुखों का कारण बन रहें हैं वास्तविकता में जो हमारे अपने हैं उन्हें हमने मंदिरों तक सीमित कर दिया है उनके कहे वचनों (भगवद्गीता) को घर में किसी ऊँचे स्थान पर रख दिया हैं कभी कभार तो हम भीखमंगा बन कर उनसे खुशियाँ माँगते है पर दरसल वह खुशियाँ हमारे दुखों का कारण बनती है राम जी तो अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार है लेकिन हमारी हालत कुछ ऐसी है जैसे सुनार की दुकान पर जाकर कोई चप्पल माँगता हो
नर्क की आग से भी बद्तर जुल्म हुए उस मासूम के साथ वैश्यावृत्ति कि आग में धकेल दिया था घर वालों ने कहा था शहर कमाने के लिए बिटिया को भेजा था दरसल पैसे के लिए बिटिया को बेच दिया था
बहुत कुछ कहना चाहती हूँ खयालों की मोटरी बाँध चलती हूँ ह्रदय में एक आस लिए जीती हूँ यूँ हीं नहीं चलती हूँ अक्सर थक कर दिवारों का सहारा ले कर बैठ जाती हूँ रोना तो चाहती हूँ पर घूंट कर रह जाती हूँ साँसें तो चलती है पर लगता है ज़िन्दगी थम सी गईं है बस ह्रदय में एक आस है पर हकीकत में कोई भी नहीं पास है ग़म के आँसू सुख चुके हैं मन की प्यास भी शायद बुझ चुकी हैं मंज़िल तक तो जाना है पर रास्ते कब खत्म होगें पता नहीं थक तो गई हूँ पर जताना नहीं चाहती कोई समझने को तैयार नहीं जब कहती हूँ कुछ तो हर कोई कह जाता है हाँ मालुम है मुझको सब कुछ पर मालूम होना ही सबसे बड़ा ना मालुम होना है कोमल सा दिल था जिसकी कोमलता को खत्म कर कठोर कर दिया गया विशवास के डोर में बाँध कर फाँसी का फंदा दिखा दिया प्यार दिया या दिया दर्द पता नहीं पर दिया कुछ तुने यह पता है शायद वह है अनुभव अब जादा फरमाइश नहीं है बस जो होता है शांति से सह जाती हूँ ना तो हूँ मैं राधा ना चाहत है मोहन की हूँ मैं एक इंसान बस हर किसी से इंसानियत की उम्मीद लगाए बैठती हूँ
मर तो रोज ही रहें हैं हम और एक दिन मरना भी तय ही है
ह्रदयाघात से तड़प कर मरेंगे हम? या युंही सोए_सोए मर जाएंगे?
रोड के किनारे लावारिस मौत होगी? या चिंता से चिता नसीब होगी?
ज़िन्दगी एैसी हो गई है मानो लकड़ी को दीमक ने घेर रखा हो बोलने से दिक्कत होती थी अब मेरे मौन से दिक्कत है
लगता है दिक्कत का मूल कारण ही मैं हूँ, भीड़ से थक कर अकेले बैठा था वो भी हज़म ना हुआ उन्हें तानों की बाढ़ सी ला दी जीवन में भीड़ को खोया या ना खोया मैनें पर खुद को जरूर खो दिया
सुरत अच्छी हो तो लोग जिस्म नोचते हैं सिरत अच्छी हो तो लोग रूह नोचते हैं
सवालों में उलझा कर उत्पीड़न करते हैं मेरे लिखने का भी मतलब निकलेगें
हकीकत में तड़प कर मुझको मौत ही मिलेगा आत्महत्या नहीं अक्सर हत्या होती है जो किसी काग़ज़ पर लिखी नहीं होती है यातनाएं दी तो दीं
लेकिन “हमें क्या तुम्हें जो ठीक लगे वह करो” का तमाचा भी जड़ जाती है नींद की गोलियाँ भी क्या असर करेगी भला जब बद्दुआओं में मेरे नाम की गालियाँ का असर हो
मुझे सुनने के लिए मेरे शब्द नहीं तुम्हारे वक्त कम पड़ जाएंगे नसीहतों कि पोटली बहुत है मेरे पास लेकिन साथ चलने वाली छड़ी नहीं है मेरे पास आत्महत्या नहीं हत्या होती हैं तनाव होता नहीं ,दिया जाता है
हमारी ये हस्ती आपसे है राम, आपके होने से ही ज़िन्दगी हमारी मस्ती में है राम, है वफ़ा मुझको आपसे राम इसलिए तो आप हमारे हो राम और हम आपके राम, भला वो हमारा कैसे होगा राम जिसने भरी महफ़िल में किया है बेवफाई आपसे राम
दीपावली सफाई का, उजाले का पर्व खुशियां मनाने का ,अंधकार पर विजय का पर्व
घर-द्वार साफ करते हैं लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए ग़र इस दीपावली कर ले हम मन की सफाई तो लक्ष्मी जी महालक्ष्मी जी के रूप में सदैव विराजमान रहेगी
हर दीपावली वर्मा जी के घर से एक किलो काजू कतली का तोहफा आता है गुप्ता जी के घर से एक किलो सोन पापड़ी का भी तोहफा आता है बदले में हम भी वर्मा जी, गुप्ता जी को उतने का ही कुछ-न-कुछ तोहफा दें ही आतें है ताकि समाज में इज़्ज़त बनीं रहें पर इस बीच वो चौराहे वाला अनाथ राजू बेचारा मायूस रहे जाता है दीयें बनाने वाले की गुड़िया फुलझड़ी नहीं जला पाती है
विडंबना इतनी है की त्यौहार केवल सम्पन्न व्यक्ति अपने आप तक ही सीमित रखता है खुशियां बाँट तें तो हैं हम पर केवल अपने स्तर तक के लोगों तक ही मान प्रतिष्ठा जहाँ मिलें वहीं जातें हैं खुशियां मिलती जरूर होगी दीपावली की पर आनंद नहीं मिल पाएंगा कभी
दीन-दुखियों के चेहरे पर मुस्कान ले आओ ना दुसरों का हक़ छीनने से घटता है खुद का हक़ बाँटने से दिन दुगनी रात चौगुनी बढ़ता है हो सके तो इस बार मिठाईयाँ उन्हें भी खिलाओ जिनके पास खाने को नहीं है दो दीये उनके घर भी जलाओ जिनके घर के दीये बुझ रहें हैं मन की थोड़ी बहुत भी सफाई कर लो ना दरिद्र नारायण की सेवा कर लो ना ह्रदय मंदिर में एक दीपक खुद के लिए भी जला लो ना अहंकार को मिटा कर ज्ञान का दीप जला लो हर पल हर क्षण दीपावली मनाने की ये तरकीब अपना लो
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यह पुस्तक पुरी तरह मुफ्त है क्योंकि इस पुस्तक का उद्देश्य रामजी के भक्तों से पैसे लेकर उन्हें लुटना नहीं है बल्कि मन-बुद्धि से परे उस राम को जानना है जो सबके अंदर है।
पाया उसे जाता है राम जो कहीं खोया है राम ढूंढा उसे जाता है राम जो भुलाया है राम आप कहाँ से आओगे राम आसमान से टपकोगे राम या धरती फाड़ आओगे राम कहीं से नहीं न राम क्योंकि आप तो हर ज़गह विद्यमान हो राम चींटी की पुकार हो राम या मस्जिद कि अज़ान हो राम आप सब सुनते हो राम आप तो उर्जा रूप में राम हर ज़गह हो राम
मैं मर भी नहीं सकता राम न मैं जी सकता हूँ राम बस आप में बस सकता हूँ मैं राम शिव भी मैं ही हूँ राम शक्ति भी मुझमें ही राम भक्ति भी मुझमें ही है राम रावण भी मुझमें ही है राम मंदिर मूर्ति मस्जिद अज़ान राम ये सब तो प्रतीक हैं मात्र हैं राम
परछाईं को कोई वास्तविक समझ ले राम तो यह ना समझी है राम फ़ोटो को अगर जीवित समझ ले राम तो क्या करूँ मैं राम हर किसी की आस्था का प्रणाम है राम पर आगे भी तो बढ़ना होगा न राम कब तक तस्वीरों में अटकेगें हम राम यह संभव नहीं है राम
कि एक ही वक़्त पर हर कोई राम मंदिर में आपकी पूजा कर सके राम मस्जिद में बैठ आपको पुकार सके राम पर यह तो संभव है राम कि मन मंदिर में बैठ मानस पूजा कर सके राम शिव रुप में हम शिव की पूजा करेंगे राम राम रुप में हम राम रस पियेंगे राम अल्लाह रुप में हम अल्लाह से मिलेंगे राम हे चिदानंद रुप राम क्या चढ़ाऊँ मैं तुमको राम
जो सास्वत है राम उसे कैसे नश्वर अर्पण करूँ मैं राम चार दीवार के अंदर बैठता हूँ मैं राम तो चार दीवार ही दिखती है मुझको राम बाजार में बैठता हूँ मैं राम तो बाज़ार ही दिखता है मुझको राम जब राम रुप में बैठता हूँ मैं राम तो सब राम राम राम ही दिखता है मुझको राम हद में तुझको ध्याया है राम तो मानव ही रह गया हूँ मैं राम
बेहद जब तुझको ध्याया है राम तो तेरा दूत बन कर ही रह गया हूँ मैं राम अनहद हो कर जब तुझको ध्याया है राम तो राम रूप में ही ख़ुद को पाया हूँ मैं राम सब अपने हैं राम सबके अपने हैं राम देने में तो आप कंजूसी नहीं करते हो राम फ़िर हम क्यूँ आपको जपने में कंजूसी कर देते हैं राम मन नहीं लगता है आपमें हमारा राम आपको हम ख़ुद से अलग समझते हैं राम
हे राम अब इच्छा नहीं होती है राम कि आपको मैं मानव रूप में पूजा करूँ राम आपको तो आप रूप में ही हो कर पूजना है राम अब आपको दूध, दही, जल नहीं चढ़ना है राम आपको तो मन और बुद्धि चढ़ाना है राम आपको पुष्प और विल्वपत्र क्या चढ़ाऊँ मैं राम आपको तो सत्व, रज और तम चढ़ाना है राम
आपको क्या भोग लगाऊँ मैं राम आपको तो प्यार से गले लगाना है राम क्या दीपक जलाऊँ मैं राम अब तो आँखों में वो उजाला लाना है राम जिससे सब कुछ और सबमें राम ही राम दिखे राम अब क्या कहूँ मैं राम अब मुझे इससे अधिक कुछ भी नहीं आता है राम अब मुझे आपको भजना भी नहीं है राम ना मुख से जपना है राम ना हाथों से जपना है राम अब आप हमें भजो न राम अब हम पायेंगे आपमें ही विश्रा-राम
मुस्कुराने की कला सिखाते है राम ग़म का ज़हर पीना सिखाते है राम भूत और भविष्य कि गोद त्यागना सिखाते है राम वर्तमान में बैठना सिखाते हैं राम काया-माया छोड़ना सिखाते हैं राम
राम होकर राम में जीना सिखाते हैं राम स्वाद ज़िन्दगी का चखना सिखाते हैं राम
सुनो ना राम लिखूँ मैं कैसे तुझपे राम समझते क्यूँ नहीं हो तुम राम कैसे लिख दूँ मैं तुझपे राम
तुझ तक मेरी बुद्धि नहीं पहुँच पाएगी राम वहां तक शब्द मैं कैसे पहुँचाऊ राम तुम तो अबाधित हो मेरे राम शब्दों से कैसे बाँधू मैं तुझको राम
ध्यान में लीन हैं मेरे राम भूखा नहीं है प्यासा नहीं है मेरा राम तृप्त है मेरा राम क्या अर्पण करूँ मैं तुझको राम
कोई धाम नहीं है बिना तेरे मेरे राम हर एक के अंतःकरण में बसता है मेरा राम सौगंध तेरी खाता हूँ मैं राम भर भर प्याला पीता हूँ नाम तेरा मेरे मैं राम
सच कहता हूँ ज़िन्दगी सुधरता है मेरा ओ प्यारे राम पता नहीं ओ मेरे प्यारे राम क्यों आँखों से पानी छलकता है राम जब जब जिक़्र होता तेरा है राम पावन सा तेरा है नाम राम
मैंने एक किताब लिखी है जिसे आप देख महसूस करेंगे की यह किसी विशेष धर्म, संप्रदाय, जाति, मज़हब के लिए है लेकिन ये सत्य नहीं है, यह किताब पूरी मानव जाति के लिए है। इस किताब में राम शब्द का प्रयोग एक उर्जा के तौर पर किया गया है जो हर ज़गह विद्यमान हैं। वह उर्जा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह में भी है और शिवजी में भी है,
जिसे आजकल की साईंस ने भी माना है
“गौड पार्टीकल” के रूप में।
मेरा किताब लिखने का एक ही मकसद है की जाति, मजहब, धर्म, रंग, भेद,…आदि को ख़त्म कर उस एक पर ध्यान देना।
दिखते तो यहाँ पर सब अलग अलग हैं पर हैं तो सब एक ही ना।
फ़िर यह ईर्ष्या राघ द्वेष क्यों और किससे..!!!
राजा हो या रंक असली औकात तो श्मशान में दिख ही जाती है
फ़िर जीते जी यह बाहरी दिखावा क्यों।
कुछ वास्तविकता को मैंने लिखा है जिसे लोग जान कर भी अनजान बनें हैं।
जिस्म और रूह की सत्यता को मैंने स्पष्ट रूप से लिखा है।
राम होकर राम को भजना है।
इस किताब का उद्देश्य अपने भीतर छुपी आत्मचेतना को जगाना है।
किसी भी चीज़ का नशा एक-न-एक दिन उतरना ही उतरना है।
रात को पियो तो सुबह
सुबह को पियो तो रात
उतर ही जाता है।
राम नाम का प्याला पी कर के तो देखो।
राम नाम का नशा कर के तो देखो वचन है मेरा आपको इससे सारी ज़िन्दगी सुधर जाती है
राम जी ही तो सरस्वती जी के रूप में मेरी जिह्वा पर विराजमान हैं
Love is innocent, love unites us with Ram, love unites us with God, love unites with Allah. Love is the name of supreme power. The true feeling of love will do well not only India but the entire humanity. Why should not we develop real love? I think every person/young boys/young girls should greet, respect and worship their true love that is parents. Everyone celebrates day of love or week of love. Then why should we not celebrate this week or day with parents & their children. I think this is true & divine love. Passion and lust give a bad name of love. This is a big difference between love and lust. Lust gives rise to sexual excitement and thoughtless gratification of desires. And love always gives eternal joy. It helps one behold oneself in all creatures. Parents have spent longer time in this world, so they are more experienced than us. We easily get the benefit of experience of the three simply by respecting them. So, whosoever wants to progress in life must obey, respect and worship our parents. When I read some article regarding bad effect of the valentines’ day. I think No Hindu, No Christian, No Muslim, No Sikh parents wants his or her child to be spineless due to premarital relationship. No parents want his or her child to disobey his or her and violate social norms and succumb to a profligate lifestyle, becomes mean by leading a selfish life, moan and groan in the old age. If the children respect their parents, they will receive auspicious blessings from their hearts which will save these future leaders of the nation from the evils of lust day.
Hello everyone, hope you all are very well. But I’m not.
I’ve decided to take a break from blogging and posting. I don’t know this break is long or short. But it’s not leaving forever.
I request you to everyone please drop your post link in my instagram or mail. Because you all are incredible. I don’t want to miss anyone post. So, please understand.