
Shanky❤Salty
अकड़ना कभी सिखाया नहीं इन्होंने
ना झुकना सिखाया कभी
सिखाया तो सिर्फ अपनी मौज में रहना
एक वाक्या याद आ रहा है
रात को वो आ ही गई थी
मुझको साथ ले जाने वाली ही थी
दवा ने भी अपना असर है छोड़ा था
दर्द ने जो साथ पकड़ा था
काफी दिनों के बाद मेरे दिल में दर्द उठा था
बाहर पेड़-पौधे बारिश में भीग रहे थे
इधर मैं पसीने से भीगा हुआ था
नींद तो ऐसी रुठी थी
दवा लेने के बाद भी मुझसे दूर बैठी थी
हर कोई श्री कृष्ण के जन्म की
तैयारियाँ कर रहा था
मैं लेट अपनी धड़कनों को गिन रहा था
पर माँ वो तुम ही थी ना
जिसने श्रीकृष्ण के मूर्ति की पूजा छोड़
“वासुदेवम् स्वं इति”
(वासुदेव तो हर जगह है)
मुझे गोद में सुलाया था मेरे दिल पर हाथ रख
“गोविंद हरे गोपाल हरे जय-जय प्रभु दिन दयाल हरे”
गाकर मेरे दर्द को दूर कर रहीं थीं
माँ तेरे थपकियों ने ही मुझको सुलाया था
कल तक चलना तो दूर
मुँह से आवाज तक नहीं ले पाथ रहा था
निस्वार्थ प्रेम (19)…..!!!!👉 यहाँ पढ़े
Yeh bahut badhiya hai. Accha hai
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Thank you❤
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This is sooo lovely like a mother’s heart, breath takingly beautiful bhai ❣👌👌
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Thank you didi❤
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Sach me neswarth Prem thi hai
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Thank you❤
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Beautiful so touching! 👌
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Thank you❤
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Welcome bhai☺️☺️
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बहुत सुन्दर कविता है निःस्वार्थ प्रेम माँ की 🌹🙏😊✍️ इस दुनियाँ में हरेक माँ अपने बच्चों को कितना प्यार करती है,
ये हम बता न सकता 👏 आप की कविताएँ निष्कलंग प्यार की दरियाँ है 🙏💝👍🏻 बहुत बधाइयाँ 👏
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❤❤❤❤
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