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निस्वार्थ प्रेम (14)…..!!!!

January 30, 2023

Shanky❤ Salty

ये हमारा
हंसना, गाना लिखना
खेलना, कूदना, सोना
सब उनसे ही तो है
माँ बाप साथ हो ना तो
बेफिक्री खुद-ब-खुद
साथ आ ही जाती है
वर्ना देखो उन्हें
जिनके सिर से माँ का आँचल हट जाता है
या पिता का साया हट जाता हो
क्या हाल हो जाती है उनकी
बस जिस्म रह जाता है
जरूरत पड़ने पर एक माँ भी
पिता का फर्ज निभाती है
और पिता भी माँ का
पता नहीं यह अलौकिक शक्ति कहाँ से आती है
बच्चे होते हुए हमें कद्र नहीं होती माँ बाप की
जब हम भी माँ बाप होते
तो बच्चे करते नहीं कद्र हमारी
ये सिलसिला चलता आ रहा है
सब कुछ मालूम होते भी
हम खुद को पतन के रास्ते ले जा रहे हैं


निस्वार्थ प्रेम (13)…..!!!!👉 यहाँ पढ़े


Author:

I am Ashish Kumar. I am known as Shanky. I was born and brought up in Ramgarh, Jharkhand. I have studied Electronics and Communication Engineering. I have written 10 books. I have come to know so much of my life that life makes me cry as much as death. Have you heard that this world laughs when no one has anything, if someone has everything, this world is longing for what I have, this world. Whatever I am, I belonged to my beloved Mahadev. What should I say about myself? Gradually you will know everything.

23 thoughts on “निस्वार्थ प्रेम (14)…..!!!!

  1. बहुत सुन्दर काव्य और बिल्कुल सच 🙏🌷👍🏻जीवन की वास्तविकता कुछ लोगों पर असर हमें देख सकते हो 🙁बहुत बधाइयाँ 👏 💕

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  2. तस्वीर सबकुछ बयान कर रही और आपके शब्द दिल को छू रहे। खूबसूरत संग्रह निस्वार्थ प्रेम का।

    ख्वाहिशें आसमान में उड़ने की,

    चांद,तारों को चूमने की,

    ख्वाहिशें पढ़ने की,

    शब्दों की ताकत समझने की,

    उम्र खेलने,कूदने,पतंग उड़ाने की,

    मगर आदत थी मां के कामों में,

    हाथ बंटाने की, 

    आभावों से भरा घर,

    जिद्द को उसके डिगा ना सका

    वो तो कमल थी,कीचड़ उसे डूबा ना सका,

    वह नित्य मिहनत,मजदूरी करती,

    और नित्य ही लड़ती अपने किस्मत से,

    एक हाथ में कलछुल,दूसरे हाथ में किताब लिए,

    जिद्द की पक्की,जिंदा अपना ख्वाब लिए।

    दुनियां में कोई सहारा नहीं,

    ना ही समाज ना ही सरकार,

    उनसे पूछो हालात कैसे,जिनके नहीं है मां बाप,

    एक तरफ ऐसे असंख्य बेटे-बेटियां बदहाल देखा,

    और दूसरी ओर नफरत का खेल खेलते सरकार देखा।

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    1. आभावों से भरा घर,
      जिद्द को उसके डिगा ना सका
      वो तो कमल थी,कीचड़ उसे डूबा ना सका,

      पुरी तस्वीर का निचोड़ आपके चंद शब्दों में मिल गया
      इतनी सुंदर पंक्ति के लिए हृदय से धन्यवाद🙏💕 ❤🤗

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