
माँ मेरी अनपढ़ थी
मेरी लाल आँखों को पढ़
हाल जान जाया करती थी
इश्क़ की जब भी बात होती है
ना जाने क्यों माँ ही याद आती है
हाथों की लकीरों में क्या लिखा पता नहीं
ग़र सर पर माँ का हाथ हो तो ज़िन्दगी में कोई शिकवा नहीं
दो वक्त की रोटी तो तुम जरूर कमाओगे
पर माँ के हाथों का प्रेम कहाँ से लाओगे
फुर्सत के दो पल खोज तुम
माँ को फोन घुमाया करो तुम
वर्ना एक दिन ग़र गुम हो गई माँ
तो आँखों में आँसू लिए
सर के सिरहाने तकिये में
माँ के गोद खोजते फिरोगे
ना जाने क्यों माँ का दिल दुखाकर
अपने किस्मत के दरवाजे बंद करते हो
माना कि धन दौलत बहुत है तुम्हारे पास
पर असली संपत्ति माँ को क्यों भूल जाते हो
वक्त है अभी भी
माँ कि ममता और करूणामयी शीतल छाया पाने का
देर मत करना तुम
नहीं तो उसके जाते ही
पल-पल के मोहताज होते फिरोगे
वाह, बहुत सुंदर कविता |
सर के सिरहाने तकिये में
माँ के गोद खोजते फिरोगे.. बहुत भावुक चित्रण |
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पसंद करने के लिए ह्रदय से आभार ✨❤🤗
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Excellent, Shanky. Bahut sundar. Main bhi padhke maa ke liye bhavuk ho gayi. In fact, I had tears. Very proud of you, dear. Keep writing and God bless you.
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Glad you liked it my lovely aunty✨❤🤗😇
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सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति👌👌
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पसंद करने के लिए धन्यवाद दीदी✨❤🤗
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Wah very nice lines🌹🌼
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Thank You Aunty ✨❤
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माँ की कमी बहुत अखरती है
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जी बिलकुल….माँ ही ज़िन्दगी होती है❤❤❤
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Great ❣️❣️tat u wrote sach a lovely lines for the mummy.
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Thank you someone 😅
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मां ऐसे ही मां नही होती। हमारी आंखों को देख सब हाल समझ लेती है।बहुत खूबसूरत कविता।👌👌
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बहुत खुशी हुई की आपको पसंद आया ✨🤗❤😇
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See yourself as a mother like her and you might view this situation differently.
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🙂
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