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अयोध्या वासियों से अनुरोध…….!!!!

February 10, 2021
Shanky ❤Salty
बड़ा व्याकुल है मन हमारा
कभी सम्मान ना मिला
हमारी माँ सीता जो को
आपकी अयोध्या जी में
ब्याह कर के आईं थीं हमारे राम जी से
षड्यंत्रों का शिकार हो वनवास को गई हमारी माँ
अग्नि परीक्षा तक देना पड़ा हमारी माँ को
फ़िर भी चैन ना मिला आपके अयोध्या वासियों को
क्या से क्या कह गए हमारे राम जी को
त्याग सीता को प्रजा का सम्मान रखा राजा रामचंद्र जी ने
है विनती मेरी आपके मोदी जी से
बनवावें रामलला का भव्य मंदिर
पर वो सम्मान लौटावे जो प्रेम किया था हमारे राम जी ने हमारी माँ सीता जी से…

Written by:- Ashish Kumar
Modified by:- A Wonderful Writer Radha Agarwal

Author:

I am Ashish Kumar. I am known as Shanky. I was born and brought up in Ramgarh, Jharkhand. I have studied Electronics and Communication Engineering. I have written 10 books. I have come to know so much of my life that life makes me cry as much as death. Have you heard that this world laughs when no one has anything, if someone has everything, this world is longing for what I have, this world. Whatever I am, I belonged to my beloved Mahadev. What should I say about myself? Gradually you will know everything.

31 thoughts on “अयोध्या वासियों से अनुरोध…….!!!!

  1. बहुत ही खूबसूरत एवं मार्मिक अभिव्यक्ति।

    बहुत ही सम्मानित थी,
    परम-आदरणीय,पूज्यनीय थी माँ सीता,
    अधिकतर जन के मन में कल कोई परिवाद नही था,
    मगर कैसे कह दें कि रामराज्य में भी कोई विवाद नही था
    राजा राम भी कल चंद निष्ठुर जन के मन से
    दुर्विचार हटा ना सके,
    अपनी पवित्र,निष्कलंक,प्राण-प्रिया को
    अवध में स्थान दिला ना सके,
    वे पवित्रता का प्रमाण दिलाते रहे,
    और निष्ठुर जनता लगाती रही प्रश्नचिन्ह,
    वही निष्ठुरता आज भी व्याप्त है,
    चहुंओर देखो परिवाद ही परिवाद है,
    मन में उठते सवाल कई,
    उसका है क्या जवाब कहीं?
    क्या अल्पमत के शोर तले
    बहुमत के ख्वाबों का
    दम घुट जाएगा,
    सुप्त हो जाएंगी उत्कंठाएँ सारी,
    क्या नामुमकिन होगा सीता का वापस आना?
    या मिट जाएगा ये शोर ,जो चहुंओर व्याप्त है,
    या सिर्फ मंदिर बन जाए,इतना ही पर्याप्त है?
    या सिर्फ मंदिर बन जाए,इतना ही पर्याप्त है?

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    1. महलों में जन्में थे मेरे राम जी
      धरती चीर कर आई थी मेरी माँ सीता जी

      अयोध्या वासियों को शंका था
      राम जी को प्रेम था
      तो लंका जा कर माँ को वापस लाया भी तो था

      राजा राम चंद्र जी अवध में स्थान दिला ना सके
      पर माँ को मंदिर से कभी निकाल भी ना सके

      प्रेम में पत्थर को पीघलते सुना था
      प्रेम प्रतिक में बनाए
      राम सेतु के पत्थरों को तैरते देखा है

      सच में अब हम कुछ ना कहेंगे
      जहाँ है वही बैठ कर खाएंगे
      राम जी को गरज होगी तो वो आएंगे
      जिसको मंदिर बनवाना होगा वो बनवाएंगे
      हम तो हम राम नाम में विश्राम पाएंगे

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