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मैं भुल क्यों नहीं पाता हूँ……!!!!

December 13, 2019
Shanky❤Salty
हजारों रास्तें हैं
इस ज़िंदगी में
पर तेरे संग चला हुआ रास्ता
मैं भुल क्यों नहीं पाता हूँ
न चाह कर भी मैं
निराशा की गोद में क्यों सो जाता हूँ
खिड़की से हर वक्त
उम्मीद कि किरण मुझको है झाकती
मैं उससे आँख मिचौली खेल कर रह जाता हूँ
माना की नींद मुझसे रुठी है
पर क्यों मुझसे ही सारे रिश्ते टूटे हैं
जब से तुम गईं हो
बहुत कुछ कह कर मुझको
हकीकत कहता हूँ मैं तुझको
आये तो कई लोग ज़िंदगी में
दर्द को जानने
क्या पता था मरहम के जगह में
खुरेद चले जाएंगे मेरी ज़िंदगी को
विश्वास कर बैठा था हर किसी पर
क्या पता था घात कर जाएंगे मेरे विश्वास पर
एेसा नहीं है की तुम्हारे जाने से
सब कुछ खत्म हो गया है
बस कुछ खाली सा रह गया है
थक सा गया हूँ मैं इस ज़िंदगी से
बस दिल चाहता है
खोल मुट्ठी लेटने को जी चाहता है
हाथ जोड़ सबको अलविदा मैं कह दूं
इस ज़िंदगी से विदा अब मैं ले लूं

Written by:- Ashish Kumar
Modified by:- A Great Writer Ziddy Nidhi
Published by:- Anonymous

Author:

I am Ashish Kumar. I am known as Shanky. I was born and brought up in Ramgarh, Jharkhand. I have studied Electronics and Communication Engineering. I have written 10 books. I have come to know so much of my life that life makes me cry as much as death. Have you heard that this world laughs when no one has anything, if someone has everything, this world is longing for what I have, this world. Whatever I am, I belonged to my beloved Mahadev. What should I say about myself? Gradually you will know everything.

11 thoughts on “मैं भुल क्यों नहीं पाता हूँ……!!!!

  1. When you want how you want, it’s hard to get that love out of your heart. But if there are no positive responses, better forget that time heals wounds. I liked your verses full of feelings .. Excelenet poem.

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  2. बहुत ही दर्दभरी रचना। मानों दिल में सैलाब भरा हो।

    तुम रूठे क्या जग रूठा,
    आँखों से नींदें रूठ गई,
    ढूंढ रही आँखें नित इत-उत,
    किधर गई तुम किधर गई।
    कलतक अक्स बसा तेरा उन,
    आँखों मे अब अश्क भरे,
    धुंधली दुनियाँ,दर्पण धुंधले,
    धुंधले सब अरमान पड़े,
    नित कहते तुम छोड़ न देना,
    सपने मेरे तोड़ न देना,
    साथ निभाना जीवनभर कह,
    हाथ छुड़ाकर किधर गई,
    ढूंढ रही आँखें नित इत-उत,
    किधर गई तुम किधर गई।

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    1. अक्सर एैसा ही लगता है
      मेरे दिल कि बात आप समझ उसे शब्दों में पिरो ही देते हो

      कितनी खूबसूरत पंक्तियाँ है ना सर ये
      “साथ निभाना जीवनभर कह,
      हाथ छुड़ाकर किधर गई,”

      जैसे धनुष से तीर निकल गया हो

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